रामचरितमानस | Ramcharitmanas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४) गति कूर कबिता-सरित की ज्याँ सरित-पावन-पाथ की ॥ . प्रमु सुजस सड़ति भनिति सलि दाइदि खुजन मन-सावनी ॥ भव-झड् भूति मसान को सुमिस्त सुदावनि पावनी॥ बो०--प्रिय लापिदि झति सवबहि मल, मनिति राम-जस-सन् । दास बिचार कि कर कोड, वन्दिय मलय प्रसड ॥ , स्याम-सुरमि-पय पिसद्‌ अति, शुनद-करदिं सब पान . शिराध्रस्थ सिय-राम-जस, गावहि सुनदि खुजौन ॥१०॥ समिन्पानिक-सुकता-छुबि जैसी । श्रदि-गिरिनगज-खिर खाद न तेसी ॥ चूप-किसोद तरुनीनतन्न॒॒ पाई । शदहिं सकल साभा अधिकार॥ तैसडि सुकबि कब्रित घुध कहीं । उपलढ़िं अनत घ्नत छुषि लहददीं ॥ मगति-ेतु विधि भवन विद्दाई । छुमिरत सारद श्रावति ;घाई # रामचरितसर बिन झन्ददाये | से संगम जाइ न काटि उपाये ॥ कि काविद थस इदय विजारी । गावदि' दरिलस कलिमल दास ॥ कौन्दे पारुतनजन युन गाना । सिर घुनि गिए॑ लगति पछ़िताना ॥ _ हृदय सिन्घु मि-सीपि समाना ! रवाती-सारद कददिं छुजाना ॥ सी बरबह घर-घारि विचारुू। दोहि फवित-सुकतामनि चाईँ॥ दो०-जुगुति बेधि पुनि. पोडियहि, राप्चंरित बर ' ताग। पदिरदिं सज्जन विमल उर, सासा झति अनुराग ॥११॥ जे जनमें कलिकाल कराता | करतब पायल वेप मणाला। 'चंलत कुपन्ध बेद-मग ढाँड़े। कपट-कलेचर कलिमल माँड़े ॥ बक भगत कहो राम के | किक्र फश्न कोइ-काम के ॥ हिन्द महू प्रथम रेस जग मोरी । घिंग धरमध्वज्ञ घन्घक घोरी ॥ 'को अपने अवगुन सब फइऊँ । बाद कथा पार नहि' साहऊं ॥ ताते' मैं 'झति अलप चंजाने | थोरे मद जानिहदि खयाने ॥ सपुक्ति विविध विधि विनती मारी । फाड न कथा छुनि देशदि जोरी ॥' . 'पतेह पर ' करिंददि' जे सट्टा । मादि ते अधिक ते जड़ मति-रहा कि न दाउ नदि' चतुर कदावड' । मति अनुरूप राम-छुन गावउ ॥ कहें रघुपति के चरित झपारा । कई मति मेपरि निरत संलारा ॥ जेदिनमादत गिरि मेद उड़ादी । कद. दूल केदि लेखे मादीं ॥




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