कबीर रचनावली | Kabir Rachnavali

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kabir Rachnavali  by श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

Add Infomation AboutShyam Sundar Das

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(६९ ) निवासी शेख तकी का शिप्यत्व स्वीकृत किया ।. तडुपरांत ये यह कहते हैं-- हमने संभवतः, पूरी तार पर इस वात के सिद्ध कर दिया है कि यह झसंभव नहीं है कि कवीर मुसलमान और सूफी दोनें रहे हैं ।”'मगहर में उनकी कब्र है जा सुसत्मानों के संस्क्षण में रहती झ्ाई है। किंतु यह चात झाश्ययंजनक है कि पक मुखल्मान हिंदी साहित्य का जन्मदाता हो। परंतु इसका भी नहीं भूलना चाहिए कि हिंदु्ो ने भी फारसी कविता लिखने में प्रतिष्ठा पाई है । फिर, कवीर साधारण येाग्यता और निश्वय के मजुष्य नहीं थे। उनके जीवन का उद्देश्य यह था कि झपनी शिश्ाओं को उन लोगों से स्वीकृत करावें, जा हिंदी भाषा डरा ज्ञान प्राप्त कर सकते थे ।* कवीर एंड कवीर पंथ, पू० ४४ कवीर साहव का मुसलमान होना निश्चित है। उन्होंने स्वयं स्थान स्थान पर जालाहा कहकर श्रपना परिचय दिया है। जब जन्मकाल ही से वे जालाहे के घर में पले थे, ता उनका दूसरा संस्कार हे। नहीं सकता था । उनके जी में यह चात समा भी नहीं सकती थी कि में हिंदू संतान हूँ । नीचे के पदों को देखिए । इनमें किस स्वाभाविकता के साथ थे अपने के जालाहा स्वीकार करते हैं-- छाड़ि लेक अस्त की काया जग में जालह कहाया 1 लि कर्वार वीजक, प्रष्ठ ६०५ कहें कचीर राम रस माते जालहा दास कवीरा हे। । प्रथम ककहरा, चरण १५ जाति जुलाहा क्या करे हिरदे वसे गोपाल । कविर रमेया कंठड मिलु चुके सरच जंजाल ॥ झादि अ्ंथ, पूष्ठ ७३७, साखी ८९२




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now