भारत वर्ष का सामाजिक इतिहास | Bharat Varsh Ka Samajik Itihas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22.17 MB
कुल पष्ठ :
442
श्रेणी :
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डॉ. विमलचन्द्र पाण्डेय - Dr. Vimalchandra Pandey
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विद्या भास्कर - Vidya Bhaskar
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(७)
_ भारतवासियों के हारा समादत होते रहे । महाकान्यों के रचयिताओं के काल विदित न होने
के कारण महाकाव्यों के रचना-काल का निधौरण करने में थी बड़ी कठिनाई होती है ।
महाकाव्यों की भाषा सुस्पष्ट एवं व्याकरण सम्बन्धी सियमों के अनुकूल होने के कारण इन
ग्रन्थों का अन्तिम रूप पाणिनि के पश्चात् का ही प्रतीत होता है !
रामायण भारतवर्ष का आदि-काव्य समका जाता है । निश्चित रूप से यह महाभारत
के पूरे का है । महाभारत में रामोपाख्यान उपलब्ध होता है, जव कि रामायण में महाभारत,
उसके कथानक अथवा पात्रों का नामोल्लेख तक नहीं है । महाभारत वाल्मीकि से परिचित
है तथा उसके एक श्लोक ( रामायण ६.८१.र० ) को भी उद्घूत कला है ।* रामायण
के अन्तःसादंय इसकी रचना का काल निधौरित करने में सहायक होते हैं। इस
में कोशल की राजधानी सेव अयोध्या के नाम से सम्बोधित होती है । परन्तु समस्त वौद्ध
एवं जैन प्रन्थों में इसका नाम साकेत है । पाटलिपुत्र की स्थापना कालाशाक ने की थी ।
परन्तु इस नमर का नाम रामायण में नहीं आता । इस महाकाव्य में महात्मा वद्ध का भी
उल्लेख नहीं है ।*ै परन्तु रामकथधा का उल्लेख एक जातक ( दशरथ जातक ) में प्राप्त होता
है । इन आधारों से यही प्रमाणित होता है कि मूल रामायण का रचना-काल बौद्ध धर्म के
उत्कपे-काल के पूर्व का है । अतः वेवर का यह कथन कि रामायण का कथानक वौद्ध परम्परा
के ऊपर आधारित है,” असंगत प्रतीत होता है । भाषा के आधार पर जैकोवी महोदय ने भी
रामायण का रचना-काल वौद्ध धर्म के उदय के पूव निश्चित किया है ।” जहाँ तक इस
महाकान्य के वर्तमान रूप का प्रश्न है वह कदाचितू इसा की दितीय शताध्दी तक निश्चित
हो गया होगा ।*
महाभारत का स्वेप्रथम इल्लेख गृद्यसूत्र में हुआ है। इस मसहाकाव्य
के रचित सागों में श्रह्मा की प्रतिष्ठा सर्वोपरि है। यह देवता महात्मा वद्ध
के जीवन-काल में अति सम्मान्य था । इन्हीं आधारों का उल्लेख करते हुए सेकडानल्
होदय से यह निष्वषं निकाला है कि मूल महाभारत का रचना-काल ईं० पू० पाँचवी
शताब्दी के लगभग का है ।* इसी विद्वान के सतालुसार लगभग ३०० इ० पू० और १०० ८
के वीच सें इस महाकाव्य का परिवरघन हुआ । यूसानियों, शकों; पहचों, विष्एणु, शिव,
७, १४३, पु |
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रैक स्थान पर जहां उल्लेख हुआ है वह प्रकषिप्तांश है ।
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जंकोबी एष्ठ. ११६, विन्टनिज ने इस भाषान्सास्य को सन्दिग्घ साना है--हिस्ट्री श्राफ
इश्डियन लिंटरेचर, भाग १ पृ० ९११
वहीं, पुर ५०३ |
आाफ सस्कत लिटरेचर प०
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