औधोगिक तथा व्यापारिक भूगोल | Audhyogik Tatha Vyaparik Bhugol

Audhyogik Tatha Vyaparik Bhugol by शंकरसहाय सक्सेना - Shankar Sahay Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ 9 ही है क्योंकि जल-त्रायु तथा पैदावार धरातल की बनावट ही पर अव- लमस्बित हैं परन्तु प्रत्यक्त रूप में धरातल की बनावट उस प्रदेश के निवा- सियों की आधिक उन्नति की सीमा का निर्धारण करती है । ऊँचे पर्वतीय प्रदेशों की श्राथिक उन्नति साधारणतया कम होगी क्योंकि वहाँ पर मागे की सुविधा नहीं होती । ऊँचे पहाड़ी देश में कृषि की अधिक उन्नति नहीं हो सकती और न उद्योग-धंधे ही उन्नति कर सकते हैं । जब सम्पत्ति का उत्पादन पहाड़ी देशों में कम होता हैं तब वहाँ पर जन-संख्या भी अधिक नहीं रह सकती है । यही कारण है कि ऐसे प्रदेशों में बिखरी हु ावादी पाई जाती हैं। पहाड़ी देशों के निवासियों के मुख्य धंधे पशु- पालन खान खोदना तथा लकड़ी का सामान बनाना है । पर्वत-श्रेशियाँ मागे के लये बाधक होती हैं । इसीलिये पहाड़ी स्थानों पर मार्ग की सुविधा नहीं होती । यद्यपि श्याधुनिक काल में निर्माण-कला ए0ट्ठांए- ९९0४ की उन्नति से बहुत से पहाड़ी देशों में भी सड़क तथा रेलवे लाइनें बन गई हैं फिर भी यह तो मानना हो होगा कि वहाँ अच्छे मार्ग नहोंने से व्यंपार की उन्नति नहीं हो सकती । पहाड़ी प्रदेशों के विरुद्ध नोंचें मैदानों में जहाँ कि भूमि उपजाऊ हो घनों झावादी रद सकती है क्योंकि ऐसे प्रदेशों में खेती-बारी तथा अन्य उद्योग-घंधे शीघ्र पनप सकते हैं तथा मार्ग की सुक्धि होने से व्यापार की भो उन्नति हद सकंती है। इनके साथ॑ ही साथ हमें नदियों पर भी विचार करना झावश्यक है क्योंकि नदियाँ मंतुष्ये की आर्थिक उन्नति में बहुत सहायक होती हैं । खेतों की सिंचाई तो आज भी नदियों के द्वारा हो होती है किन्तु रेलों के समय से पूर्व नदियाँ अथवा नहरें ही मुख्य व्यापारिक मार्ग थीं | आज भी बहुत-सी नदियाँ संसार को मार्ग की सुविधा प्रदान करती हैं । प्राचीन फाल में नदियों ही के द्वारा व्यापारिक माल एक प्रान्‍्त से दूसरे प्रान्त को भेजा जाता था यद्यपि रेलों की पद्धि से अधिकतर नदियाँ इस




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