उपनिषद् - प्रकाश | Upnishad Prakash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17.68 MB
कुल पष्ठ :
534
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती Swami Darshananand Sarswti
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“इशसापानसट
पद झासीम (वड़ा) काम उससे जन्म भर में पूरा न दोगा 'और
तुम उसके दाथ से बच जाओगे 1 थ
यद्दी दशा आखियों के मन की हैं। जिस समय उसे शुभ-कार्य
से समय सिलेगा उसी समय मनुष्य के नाश करने चाले कामों
में लग जावेगा । इस कारण उस सन को. परोपकार के कांये में
'सगाये बिना संसार की बुसइयो से बच नही सकते । न खुरा
काम करके विपत्ति रदिति और कष्ट से मुक्त दो कर किसी
शुभ परियसास की आशा ही कर सकता है। सचुष्य के छापने
काम इतने थोड़े हैं कि मन उनको अति शीघ्र पूरा कर लेता
है। मगवाद राम चन्द्रजी ने भी वीर हनुमान को यद्दी उपदेश
हकिया था कि इच्छा रूपी नदी शुभ और अशुभ रूपी दो कर्म
मार्गों में बहती है। जो इच्छा इंश्वर की “आज्ञा के अजलुसार
हो,,वद शुभ है घर जो उसके विपरीत है, बुरी कामना है ।
इसलिये ईश्वर को सर्व व्यापी समक और यह सोचकर कि '
: सकी आज्ञा के ' विरुद्ध कर्म करने से दुःख भोगना पड़ेगा,
रवार्थपरता और दूसरों का अधिकार छीनने की सावसा
छोइक्र पसपकार आर दूसरों की सलाइ के काम करना
चाहिये । जो मनुष्य दूसरों की भलाई के काम करते हूँ, वह
सदैव सुख से रहवे हैं। इसलिये परोपकार की इच्छा जो
शुस्र है, सदा मन से रखकर संसार के उपकार पर कमर
करसनी चाहिये । जच तक श्राण रहे, कभी उस उपकार के
काम से.दूर होकर जीवन न व्यतीत करना चाहिये; क्योंकि
संनुष्य-ज़ीवस इतना अमूल्य हें कि उसका बार-बार सिलना
त्स्यन्त -कठिन है । जो मनुष्य इश्वर के चियमों की. चिन्ता
न॒ करके मदुष्य-जीवन को छृूथा कासो सें खा रहे हैं;
, उनसे 'चुदुर्कर, मुख कोई नहीं; वमौर जो दूसरों को हानि पहुँचा
नि
लय,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...