पृथ्वीराज रासउ | Prthviraj Raso

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Prthviraj Raso by माता प्रसाद गुप्त - Mataprasad Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| | १४] तू करिष्य शिष्यहिं कंरे जू. प्रीतम दाउन ! ३, कवि० ७। अन् परिवार की भाँति इसमें भी चरण ४ का अधिकांश नहीं था। उसके रंधान पर इसमें निम्नछिखित चरण गढ़ लिया गया 2० बंस मध्य चर चीस भरिह संग्राम भरोचन । ४, कवि० २ । अ०् परिवार की भाँति इसमें भी चरण १ नहीं था; उसके स्थान पर इसमें यथा चरण ९२ निम्नछिखित नया चरण गढ़ लिया गया 2--' पुक्कारह परमार जइत सब जगही जान । ४ कबि० ७ । अ०् परिवार को भाँति इसमें भी चरण ६ नहीं था, उसके स्थान पर यथा चरण ५ निम्नछिखित नया चरण गढ़ लिया गयी इन सावंत सकल सूरति मिछंति इइ स बात दुदाइ करी । ४, कबि० ९: भ० परिवार की भाँति इसमें भी चरण ९ तथा ६ की शब्दावछी छूटी हुई थी जो एक चरण की शब्दावली के छगभग थी, इस नुटि को ठी क करने के छिए. इसमे निर्मलिखित नया चरण गढ़ कर यथा चरण ६ रख लिया गया :-- सुर्तान राज प्रधीराज तनु छिपयि जेन प्रौडारहह । ५, नारा० १ । अ० परिवार की मांति इस भी चरण ४ नहीं था; इसकी पूर्ति निम्नलिखित. नवनिर्मित चरण ४ से कर ली गई 1 श्लोक सोक संदर सुचा सुपाद संमन्री । ९, दो० ११: अ० परिवार की भाँति इसमें भी 'वरण २ नहीं था, जिसकी पूर्ति निम्नलिखित नवकद्पित चरण से कर ली गई ।--- व इच्छन इच्छह नम भूरि ता भीस चूप माझु । ९, कवि ३: भग परिवार की भाँति इसमें भी चरण १ नहीं था; इसकी पूर्ति यथा 'चरण है निम्नलिखित नवनिर्मित चरण बढ़ा कर कर ली गई टरच्छत इच्छा हष्पनन भूरि ता भीम सुफ मानु ! ं .. १३, दो० १७: भ० परिवार की भाँति इसमैं भी चरण: १-की शब्दावछी छूटी हुई थी, उसकी पूर्ति निम्नलिखित नवकदिपत चरण र जोड़ कर वर छी गई इ--- पुथ्वीराज चहुबान को सो लिनु भरे मोहिं ! ये सभी प्रज्षेप अ० परिवार के ६० संख्यक प्रति के प्रशेपों से भिन्न हैं, इसलिए दोनों का प्रक्षेप- सम्बन्ध नहीं हैं ४ इस प्रकार के प्रक्षेपों के अतिरिक्त इसमें लगभग ९० रूपक और मिलते हैं, जी परिवार अ० वी 'किसी प्रति मैं नहीं मिलते हैं; रुगमग थे सभी छ्द अगे उण्दिखित ना तथा स० मैं मिल जाते हैं, और फ० में उसकी अपनी क्रम संख्याओं के बाहर पड़ते हैं। इसलिए, यह प्रकट है कि थे छन्द फ० मैं बाद में मिलाएं गए, और प्रशेप अथवा पाठ मिश्रण के द्वारा उसमें जाए । . इन इष्टियों से देखने पर फ० प्रति अ० परिवार की प्रतियीं के होते हुए महत्वष्वीन और भ्रामक प्रमाणित दोती है, और इसलिए यह अ० परिवार की प्रतियों का स्थान नहीं प्रद ण कर सकती है। फिर भी . इसमें अनेक ऐसे स्थल हैं जो अभुदित हैं और अ० परिवार की प्रतियों मैं चुटिपूर्ण अथवा प्रशिस हैं ।-- ः २, सुजं० १, चरम १५ ९, उधोर ८, रण २८-२९ * बद प्रहव्य है कि उपशत ५, दो० १1 की भुदिखूति थी इसी नंकर्पते चरण दरों की गा है ।




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