तंत्र - महाविज्ञान खंड 1 | Tantar Mahavigyan Khand 1
 श्रेणी : इतिहास / History

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
12.4 MB
                  कुल पष्ठ :  
523
                  श्रेणी :  
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              लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ |    तत्र-विज्ञात उसमे कई चीजें बहुत खटकते वानी ही नहीं  उन भावनाय्रों के सर्वथा प्रतिकूल भी हैं जिनको लेकर ऋषियोने इस महान उसकी रचना की थी । ऐसी विकृतियो मे पशुब्रलि को सर्वोगरि कल का पथ फहां जा सकता है । सुर पशु-पक्षियों का देवी-देवताश्रो के साम पर कत्ल क्रिया जाना उन देवता की महिमा को समाप्त करके सार सभ्य समाज के सामने उन्हें घूरित  निदित  नी व  क्र एव हृत्यारा सिद्ध करता है । जिस देवता को प्रसव करने के लिए बलि चढाई जाती है  वस्तुत उन्हें ध्रसीम कष्ट श्रौर लज्जा इस कुकृत्य से होती है क्योकि देवता शब्द ही दिव्प्र तत्व  दया  करुणा  दान  उदारता  सेवा  सहायता म्रादि सत्म्वृत्तियों का ययोतक है  जिसमें यह गुण न हो --उलटे नन्हे मुन्ते बेवस श्ौर वेकसी प्राणियों का खुन पीने की इच्दा हो  उन्हे दवा कौन कहेगा ? वे तो श्रसुर एवं पिशाच ही गिने जायेंगे । देवतागो के महान गौरव को नष्ट कर उन्हे दुनियाँ के सम्य समाज के सम्पुव इप बुरे रूप में उपस्थित करना वस्तु उनके साथ दुश्मनी करना दै । उन कलकित करने का प्रदरन करने वाले के प्रति वे प्रप्त होगे  इसको श्राशा कदापि नहीं की जा सकती । परिणाम स्वरूप जो लोग पशुत्रलि करने हैं  उनके उल्टे रोग  शोक  श्रज्ञान आदि क्लेश  कलह  दुष्टता  दुवु द्वि श्रादि श्रनेक दुखों की हीवृद्धि होती है। पथुवलि करने वाले लोगा मे से फनते-फुनते कोई विरला ही देखा जाता है श्रप्यथ। उ है. निर्दोध जीवों की हत्या तथा देवता को कल कित करके उनके क्रो एवं शाप के फलस्वरूप नाना प्रकार के कष्ट ही मिलते हैं । पशुबलि प्रथ्थ से देवताओं का भारी भ्रपयश होता है  हृत्या का तुशस पाप लगता है श्रौर बलि कराने वालो को पाप का निक्चित परि- साम भुगतने के लिए इस लोक मे नाना प्रकार के दु खो एवं परलोक में तारकीय यत्रणाश्ो का भागी बचना पड़ता है । यह कुप्रथा निदिचित रूप से हिल्दू घ्म पर भारी कलक है । जिस धम का मूल हो दया श्रौर श्रहिसा
					
					
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