सुरति मिश्र का अज्ञात काव्य | Surati Mishra Ka Agyat Kavya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
262
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दे सर ्
हर शोध-भूमिका कि भव रै- कि
दे नद्धिनिरी नहर ह
“'कविप्रिया ग्रत्थ केशो कृत ने सब संस्कृत के पण्डितों . को इस चात-.
पर भ्रारूढ़ कर दिया कि वे सब संस्कृत काव्य को छोड़ भाषा काव्य करने
लगे । इसी कारण संवत् १७०० में चिन्तामणि, मतिराम, झुषण, कालिदास
कर्बिंद, दूलह, देव, करन >६ १ सूरति मिश्र, देवीदास, मुबारक; रसखान,
रामकवि इत्यादि कवियों ने भाषा-काव्य के बड़े-बड़े अदुभ्चुत ग्रस्थ बनाएं
संवत् १८०० में जँसे भ्रच्छे कवि हुए ऐसे किसी सैकरा के भीतर नहीं
हुए थे ।””*
इस परिचय के श्रतिरिक्त सरोजकार ने सुरति मिश्र की कविता के
दो उदाहरण भी प्रस्तुत किये हैं, जो निम्नांकित हैं :-- ः
' खरी होहु ग्वालिनि, कहा जु हमें खोटी देखी
सुनो नेक॒ बैन सो तो श्र ठाँड जाइये ।
दीजै हमें दान, सो तो श्राज ना परब कछु,
गोरस दे, सो रस हमारे कहाँ पाइये ॥।
मही हमें दीजै, सो तो दे है महीपति कोऊ,
दही दीजै, दही हो तो सीरो कछु खाइये ॥।
“सुरति” सुकवि ऐसे सुनि हरि रीभे लाल,
दीन्हीं उर माल शोभा कहां लगि गाइये ॥।
श्रलंकार-माला
दोहा--
तड़ि घन वपु घन तड़ि वसन, भाल लाल पख मोर ।
ब्रज जीवन सूरति सुभग, जय जय जुगल किशोर ॥।
सूरति मिश्र कनौजिया, नगर झागरे वास ।
रच्यौ ग्रन्थ नवभूषननि, वलित विवेक विलास 1
संवतु सत्तरह से बरस, ख्यासठि सावन मास ।
सुरगुरु सुदि एकादसी, कीनौ ग्रन्थ प्रकास ।।”*
शिवसिंह द्वारा प्रस्तुत विवरण से पता चलता है कि--
१. शिवसिंह-सरोज, ले० शिवसिंह, प्रथम संस्करण, संवत् १९३४
चि० पु रपट
२. शिवसिह-सरोज, पूृ० रप£1
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