आशा पर पानी | Asha Par Pani

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Asha Par Pani by विमल - Vimal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श पहला परिच्देद विवाह के योग्य हो गई, इसकी फ़िक भी छोड़ दीजिए, । हाँ, उसके लिए उपयुक्त पान्न का श्रनुलन्धान करते रहिए। ईश्वर कार्य में श्रापफी सद्दायता करेगा, उसकी ' बड़ी लम्वी भुज्ञा है, बदद सबकी सुधि लिया करता है ।” “पमुककको भी.ऐसा दी विश्वास है, किन्तु ख़ाली दाथ काम केसे चले ? किसी प्रकार जीचन निर्वाह कर रहा हूँ । मेरे पास पक कौड़ी भी नहीं वचचती । स्त्री के पास पक भी गहना नहीं है। श्रापसे क्या छ़िपाउँ, मेरी अवस्था ऐशी चिन्तनीय है कि कष्ट का कलेजा भी काँप जाता होगा । पर क्या किया जाय, लाचारी है | श्राज्ञ तक मैंने किली से किसी प्रकार की सहायता भी नहीं चाही है, यद इसलिए कि सिक्षा-वुत्ति से स्ृत्यु दी अच्छी है। किसी श्रकार रुखा-सूखा खाकर या भूखा रह कर भी घर में रददना ही अच्छा समझा है । स्त्री प्रायः रुगणावस्था में दही रददा करती है। उसकी चिकित्सा भी भ्रच्छे वैद्य वा डॉक्टर से नहीं करा सका हूँ। प्रथम तो मेरे पास नगद्नारायण ही नहीं, दूखरे ये मद्दाशयगण प्रायः ऐसे हृदय-द्दीन हुआ करते हैं कि किसी की गिड़गिड़ाइट पर ध्यान नहीं देते । इसीलिए विवश द्ोकर स्वयं वैद्यक श्रन्थों को पढ़ कर आप दी औषधि बना लिया करता हूँ, श्रभी तक उसी से कार्य चल रददा है। समाज की ्रवस्था ऐसी विगड़ गई है कि दीन-दुखियों की श्रोर किसी की दृष्टि दी नददीं दौड़ती,




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