जीवन का सद्व्यय | Jivan Ka Sadvyay

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Jivan Ka Sadvyay by दुलारेलाल - Dularelal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'ठ्यक्तिगत मानवीय कतब्य पहला अध्याय विचार है मनुष्य, आत्मचिंतन कर--यह सोच कि तेर जीवन धारण करने का उद्देश कया है ? अपनी शक्तियों का ध्यान कर; अपने अथावों ओर संबंधों पर ध्यान रख। इससे तुमे जीवन के कतेंव्यों का ज्ञान होगा, और अपने समस्त कार्यों में मागे दिखाई देता रहेगा । जब तक अपने शब्दें को तौल न ले, मुँह से कोई बात न निकाल; जो काये तू करना चाहता हैं, उसके संबंध में अपनों धुन और लगन की जाँच जब तक न कर ले, तब तक कोई काम न कर । इसका फल यह होगा कि अकीति तुमसे सदा 'दूर रदैगी, शमिंदगी तेरे घर के लिये बेगानी चीज़ होगी; पश्चाताप तेर निकट न आवेगा, और न शोक की छाया तेरे कपोलां पर दिखाई देगी | जो विचार-हीन है; वह अपनी जिह्ा पर झअ'कुश नहीं “रख पाता; जो सन आता है; वदीं कह बडता है. और फिर अपने ही मृखंता-भरे शब्दों से फेँस भगड़े में पढ़ जाता है । जो मनुष्य बिना इस बात को सोचे या देखे कि दूसरों




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