संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास भाग-1 | History Of Sanskrit Poetics (Part-1)
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
327
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नार॑म न्श्
रे
बच्कारो के थास्वोय निस्पण की दिशा में निश्चित, क्तु ढुछ स्थल
विया-कलापों का प्रमाण निंधटु और निदक्त से मिलता है। मापा के सामान्य रूप
को विशेषताओं के अनुस घात से--जिसका प्रार म प्राचीनकाल से हो हो चुका था--
स्पष्ट ही लोगों का ध्यान अलकारों के विस्लेपण की लोर आइप्ट हुआ, क्तु फिर
भी यह प्रश्न केवल भाषा-सवधी दृष्टिकोण से सवद्ध रहा था ।. निसक्त में पारि-
भापिक जय में अछकार शब्द का प्रयोग नहीं मिलता, किनु यास्क ने 'अलंकरिप्णु”
दाब्द को 'लचंडत करने के स्व भाववाला' के सामान्य बे में प्रयुक्त किया है।
पाणिनि मे उए, श. 136 में इसकी व्यास्या की है और स्पप्टत' दातपथ ब्राह्मण
( उी, 8. 4. 7; की, 5. 1. 36 ) बौर दादोग्य उपनिपद ( भा, 8. है )
में यह घब्द इसी अये में बाया है। निघटु (एं 13) में बंदिक “'उपसा' के
बारह मेदो को दयोतित करनेवाले थाब्दों की एक सूची सन्निविप्ट है, जिनके
दाहरण निरक्त 1. 4, पा. 13-18 और 15.6 ) में दिए गए हैं।
इनमें से 'इव', “यथा, नि, चित, 'नु” और 'आ' निपातों में उद्दिप्ट
छह भेदी की चर्चा यास्क ने “उपमार्ये निषात.” का विवेचन करते समय
की है (1. 4 ) और अंशतः इन्हें कर्मोपमा' के अंतर्गत भी सम्मिलित
किया है ( मी. 15 ) । नत्पदचात् यास्त ने मूनोपमा और रूपोपमा का उल्लेख
किया है। सूकोपमा से 'उपसित' आवरण था ब्यवटार मे उपसात' तुस्य हो
जाता है और 'सपोपमा' में “उपमित' का रुप “उपमान' के समान हो जाता है ।
उपमा के चतुर्थ प्रवार में “यया' निमात का प्रयोग वाचक दाव्द के रुप में होता
है। अनतर सिद्धोगमा का वर्गन है, जिससे तुलना का सान सुसिद्ध (सम्पक सिद्ध)
है बौर यह (मान) “तू” प्रत्यय के प्रयोग द्वारा विशिप्ट गुण और किया में
अन्य सब बढ़कर है ।. उपमा का अंतिम भेद. “छुप्दोपमा' अबवा
अर्वोधना है ( जिने परवतों सेंद्वातिक्ों ने “रूपक' कहा है ) | इसका
उदाहरण ऐं. 18 ( थौर 35. 6 ) में मिलता है, जहाँ प्रगंसावाचक 'सिंद' और
*व्याघ्न' तथा निदावाचक “वन” और “काक' यव्दों के लोकप्रिय प्रयोग का उदाहरण
दिया गया हैं। यास्क ने केवल तुननायंक निपातों का निदेश करने के लिए
सउपभान' दाइद का प्रयोग किया है ( ध्यी. 31 ) ।. तुलना का महत्व सामान्यतः
व. 19, , हु; इच्, 11, रा. 22 जौर छीं 13 में भी निर्दिप्ट हैं ।
तत्व की कुछ जानडारों अवश्य थी । जेल आफ दि डिपार्टमेंट आठ सेटर्स, कलकत्ता
विश्वविद्यालय, डि, 1923, पूृ० 100 में बोर एन» सट्टाचाय के लेख का भो
बदलोकन करें ।
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