न धर्म न ईमान | Na Dharm Na Iman

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Na Dharm Na Iman by रेवती सरन शर्मा - Revati Saran Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दया दया : दिनेश दया दिनेश न धर्म, न ईमान ए हर जोहो। (वनकर) पर फिर भी कभी-कभी सस्ताने को जी चाहता है । [दिनेरा उसकी तरफ देखता है । दया चचलता से मुसक- राती है। उसे मुसकराते देखकर टूसरी तरफ मुह करके बंठ जाता है । दया वडे प्यार से उसकी तरफ देखती रहती है । ] नाराज हो ? मना लूँ? (वनावटी सोच की मुद्रा मे ) कसे ? (फिर पलट कर उसकी ओर चचलतापूर्वक देखते हुए और आगे वढते हुए) माफी मांग ? हाथ जोड_ ? (झुककर) पेर छुऊँ ? (दिनेश गुस्से से झटककर उसकी तरफ देखता है। दया वनावटी डर से पीछे हटती है । चचलता और ज्यादा हो जाती है 1) नही-नही । पर कभी नहीं छऊँगी--किसी के नहीं । तुम्हारे भी नहीं ' क्यो ? अब खुद हो न? (वन्घा हिलाकर) बोलो । (आवाज़ नीची करके) देखो मूघे जाना है ! (विना देखे) तो जाओ । तुम नाराज हो और मैं चती गई हूं, ऐ है? (सट्सा तडपकर ) दया 1 (उसके हाय हायों मे ले लता है।) मेरे इतना समझाने पर भी तुम इतनी हारी, रतनो हीनता वी बात वयों करती हो * ध दी




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