भड़ामसिंह शर्मा | Bhadamasingh Sharma
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
135
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अड़ामसिंद शर्मा न
लू ६9० ५- प्8> ब9०पफफ>
रे भाइ ! श्रीराम ! पत्ता देते हो या नहीं ?
श्रीराम--यार ! चाँद खूब घुटी है ।
एक--तो फिर ? तुम्हारी राय दे कि ताश बन्द कर दिया
खाय ?
श्रीराम--दोस्त, मज़ा तो इसीमें है ।
दूख्रा--भाई साइवको तो देखो, किस तरहसे घूर रहे हैं ।
रे भाइ, आँखें कया एकदम नज़र कर दी ?
भाई साहब--तुमने फिक़रत तो सुना दी नहीं । नहीं तो दबे;
तुम वहाँ पहुंचते ।
दूने--फिक़ररा कैसा
भाई साइब--छच्छा, कोगो ! बताझो, इसके कया मानी हैं
कि--वहद शादी रालत है ।
दूबे--शादी शाक्षत है ! शादी भी क्या कोई अक्ज्वराका
दिसाव है ? वाह खूब रददा यह तो ।
एक--इसके कहनेवाले कौन हैं, जरा उनको शक तो देखूं ।
श्रीराम--शकल्ष तो नहीं, एक घुडी हुई चाँद है ।
गाढ़ीकी भड़घड़ाइट अब छोर तेज़ दो गयी। ापसकी
बातें जिसकी बहस ज़रा मुशकिकसे सुनाई देने लगीं। ताश
श्रज्नम रख दिया गया छोर पिक़ोबाजी शुरू हो गई। एक
भले आदमी जो अबतक खाली त्योरियाँ ही. रद-रददकर
बदल रदे थे, पिनपिनाकर इठ बेठे छोर इस छोटीस्री
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