पृथ्वीराज रासो भाग 3 | Prithviraj Raso Vol 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20.27 MB
कुल पष्ठ :
513
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)४४ सारंगदेव का कहना कि पितृनैर का
लेना बौारों का मुख्य कर्तव्य है ।
५४६ सारंगराय का नागौद के पास मेंग-
लगढ़ के राजा हाड़ा हम्मीर से
मिलकर उसे अपने कपट मत में
बाँघना ।
४७ सारंगराय का पृथ्वीराज श्रौर समर
सिंद्द जी के पास न्योता भेजना ।
भ८ यहां एक एक मकान में पांच पांच
झस्त्रधारी नियत करके कपट चक्र
रचना |
५६ हाड़ाराव का पृथ्वीराज श्ौर समर
सिंह से मिलकर शिट्टाचार करना ।
६० कवि का दाड़ा राव पर कटठाच ।
६९ पृथ्वीराज को नगर में पैठते ही
अशकुन होना ।
४२ ज्योनार द्वोते हुए वार्तालाप होना ।
६६ उसी समय किले क किवार फिर
गए भर पृथ्वीरान पर चारों ओर
से झाक्रमण हुआ 1
«४ सारंगंदेव के सिपाहियों का सब को
चेरना श्र पृथ्वीरान के सामन्तों
का उनका साम्हना करना ।
<४५ रायल जी श्ौर भीम भठूटी का
दन्द युद्ध ।
६६ पृथ्वीरान का नागफनी से शत्रुओं
को मारना ।
<७ घोर घमासान युद्ध होना और समस्त
राज्य मददल में खरभर मच जाना ।
६८ रामराय बडगूजर का द्वाथी पर से
किले के भीतर पैठ कर पारस
करना |
<£ कविचन्द द्वारा युद्ध एवं सारंगदेव
के वुछत्य का परिणाम कथन ।
७० पज्जूनराय के पुत्र कूरंमणाय का
( ३ )
१०७३
१०७४
१० भ्भ
कु
शु 9३४७
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बड़ी वीरता के साथ मारा जाना |
७१ इस युद्ध में एक राजा, तीन राव,
सोलह रावत, श्ौर पन्द्रद भारी
योद्धा काम ्ाए ।
७२ रेन पवार ( सामंत ) की प्रशंसा ।
७६४ रेन पंवार के भाई का सारंग को
पकड़ना श्र प्रथ्वीराज का उसे
छु़ा कर हम्मीर को तलाश करके
उससे पुनः मित्रभाव से पेश श्राना ।
७४ तेरह तोमर, सरदार शरीर श्रन्य बार
सरदार सारंग की तरफ के काम
झ्ाए ।
७४५ हुसेन खां का श्रमर सिंह की बहिन
को पकड़ लेना श्रौर रावल जी का
उसे छुड़ा देना ।
७४ रावल समर सिंद जी की प्रदोसा
और सारंगदेव का उनको श्रपनी
वहिंन व्याद्द देना |
७७ झ्राधी रात को समाचार मिलना कि
रणथेंभ के राजा को चन्देल ने घेर
लिया है ।
७८ षुमान भ्ौर “प्रसंगराय” खीची का
रणथंभ की रक्षा के लिये जाना ।
७३ प्रथ्वीरान का रणथंभ व्याइने
जाना ।
८० प्रृथ्वीराज की स्तुति बयोन ।
भा प्रथ्वीरान का श्रागमन सुन कर
उन्दें देखने की इच्छा से हसावती
का भरोखे से भांकना 1
८२ गौख में से देखती हुई दसावती की
दशा का बेन !
८३ दइंसावती के घुंगार की तय्यारी 1
८४ हंसावती की अवस्था की सृक्मता
, . कावर्यन।
८४ हंसावती का स्वाभाविक सौन्दर्य
बेन ॥
टरशप,
०८०
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