पृथ्वीराज रासो भाग 3 | Prithviraj Raso Vol 3

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Book Image : पृथ्वीराज रासो भाग 3 - Prithviraj Raso Vol 3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४४ सारंगदेव का कहना कि पितृनैर का लेना बौारों का मुख्य कर्तव्य है । ५४६ सारंगराय का नागौद के पास मेंग- लगढ़ के राजा हाड़ा हम्मीर से मिलकर उसे अपने कपट मत में बाँघना । ४७ सारंगराय का पृथ्वीराज श्रौर समर सिंद्द जी के पास न्योता भेजना । भ८ यहां एक एक मकान में पांच पांच झस्त्रधारी नियत करके कपट चक्र रचना | ५६ हाड़ाराव का पृथ्वीराज श्ौर समर सिंह से मिलकर शिट्टाचार करना । ६० कवि का दाड़ा राव पर कटठाच । ६९ पृथ्वीराज को नगर में पैठते ही अशकुन होना । ४२ ज्योनार द्वोते हुए वार्तालाप होना । ६६ उसी समय किले क किवार फिर गए भर पृथ्वीरान पर चारों ओर से झाक्रमण हुआ 1 «४ सारंगंदेव के सिपाहियों का सब को चेरना श्र पृथ्वीरान के सामन्तों का उनका साम्हना करना । <४५ रायल जी श्ौर भीम भठूटी का दन्द युद्ध । ६६ पृथ्वीरान का नागफनी से शत्रुओं को मारना । <७ घोर घमासान युद्ध होना और समस्त राज्य मददल में खरभर मच जाना । ६८ रामराय बडगूजर का द्वाथी पर से किले के भीतर पैठ कर पारस करना | <£ कविचन्द द्वारा युद्ध एवं सारंगदेव के वुछत्य का परिणाम कथन । ७० पज्जूनराय के पुत्र कूरंमणाय का ( ३ ) १०७३ १०७४ १० भ्भ कु शु 9३४७ १०७८ श बड़ी वीरता के साथ मारा जाना | ७१ इस युद्ध में एक राजा, तीन राव, सोलह रावत, श्ौर पन्द्रद भारी योद्धा काम ्ाए । ७२ रेन पवार ( सामंत ) की प्रशंसा । ७६४ रेन पंवार के भाई का सारंग को पकड़ना श्र प्रथ्वीराज का उसे छु़ा कर हम्मीर को तलाश करके उससे पुनः मित्रभाव से पेश श्राना । ७४ तेरह तोमर, सरदार शरीर श्रन्य बार सरदार सारंग की तरफ के काम झ्ाए । ७४५ हुसेन खां का श्रमर सिंह की बहिन को पकड़ लेना श्रौर रावल जी का उसे छुड़ा देना । ७४ रावल समर सिंद जी की प्रदोसा और सारंगदेव का उनको श्रपनी वहिंन व्याद्द देना | ७७ झ्राधी रात को समाचार मिलना कि रणथेंभ के राजा को चन्देल ने घेर लिया है । ७८ षुमान भ्ौर “प्रसंगराय” खीची का रणथंभ की रक्षा के लिये जाना । ७३ प्रथ्वीरान का रणथंभ व्याइने जाना । ८० प्रृथ्वीराज की स्तुति बयोन । भा प्रथ्वीरान का श्रागमन सुन कर उन्दें देखने की इच्छा से हसावती का भरोखे से भांकना 1 ८२ गौख में से देखती हुई दसावती की दशा का बेन ! ८३ दइंसावती के घुंगार की तय्यारी 1 ८४ हंसावती की अवस्था की सृक्मता , . कावर्यन। ८४ हंसावती का स्वाभाविक सौन्दर्य बेन ॥ टरशप, ०८०




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