साहित्य की झांकी | Sahitya Ki Jhanki
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( छ )
एक बहुत ही सदत्व-पू्ण अंश हमारे सामने से शोकल
रहता है। कालों में साहित्य का विभाजन और उसी दृष्टि
से उनका विवेचन सादित्य के यथाथ रूप को समभने में
असमथ हैं । दिन्दी-साहित्य के ऐसे ही इतिहदासों से छुछ लोगों
के दो प्रकार के भाव दो गए हैं । एक तो यह कि दिन्दी-सादित्य
में विकास का सूत्र नहीं, उसमें क़लमें लगायी गयीं हैं । दूसरे
भारतीय साहित्यिक वातावरण में उसका कोई क्रम-युक्त स्थान
नहीं। किन्तु ऐसा नहीं दै। हिन्दी-साहित्य में विकास की
थारा है। एक भाव बीज रूप से कर रूप होता हुआ बृक्त
में परिणत होता देखा जाता है । साथ ही उसमें काल और
परिस्थितियों का सददयाग भी मिलेता है |
पृथ्वीराज रासोी और बीसलदेव रासो जेसे ग्रन्थों में मिलने
वाली प्रेम-कहानी जायसी और अन्य प्रेम-छाख्यान-काच्य-मार्गी
कबियों की कहानियों का सूल है '्ौर बद्द कहानी भी साधारण
जनता की वस्तु है। इस प्रकार सूफियों की प्रेम कहानियाँ
रासो के बाद अनायास ही नहीं उभर पड़ीं, उन कहानियों
द्वारा प्रेम की पीर उत्पन्न की गयी । प्रेम की पीर ने प्रेमी की
छापेक्षा अनुभव करायी और भक्त कवियों ने “साकार” रूप
खड़ा कर दिया-यह्द बात दसारी पुस्तक के पदले निचन्ध में
रुयक्त की गयी है । इससे रासो झथवा चारण-काल, प्रेमगाथा
काल और भक्ति काल सुम्दखलित प्रतीत होने लगेंगे। यों तो
नेक समस्याएं रासो छौर प्रेमगाथा, साथ दी निगंणवाद में
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