काव्यश्री भाग - २ | Kavyashri Part 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
209
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)काब्यश्री-अलेकार श्१
(11) पतनिक भीख कभी सकते नहीं” में क-भी-रु, तथा
'भी-रु-क' की एक एक बार आवृत्ति है ।
(11) कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय । में कनक
क-न-क की आवृत्ति है । _
(ग) शब्द-योजना
'शब्दों' का विशेष चयन भी सुन्दरता उत्पन्न करता हैं इस
शब्द योजना के भी कड प्रकार हो सकते हैं :<--
(१) एक ही शब्द की अनेक बार याजनां
से-( क ) 'नहिं घन घन है परम घन तोषद्धि कददिं प्रवीन )।”
[ यहाँ, धन कई बार आया दे ]
(ख) नहीं किसी का, नहीं किली का; दड मेरा, वह मेरा |
[यहाँ 'नहीं क्रिसी का' आर “बह मेरा” दो बार
आये हैं ]
(ग) हाय, दाय मैं लुट गई ।'
[यहाँ हाय; हाय दुःखवानी शब्द की ्ातत्ति है
(घ) एक ह्दी शब्द की मिन्न मिन्न अर्थों में उतनी ही बार
योग |
जैसे सारंग ने सारंग गो सारेंग बोलो, श्राय ।
जो सारंग सुख ते के सारंग निकस्यो जाय ॥।
( सारंग के मिन्न मिन्न स्थलों पर भिन्न मिन्न अर्थ है |
(छू) एक डी शब्द के अनेक 'अथ लगनों
से-चरन घरत, चिन्ता करत, नींद न चाहत सोर ।
_ सबरन को दूढ़ृत फिरत, कवि. भावुक झरु चोर |
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