कल्याण पुराण कथानक | Kalyaan Puran Kathanak

Kalyaan Puran Kathanak by राधेश्याम खेमका - Radheshyam Khemka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अड्ड 1 ; '* विन्नें ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्‌ » ने अपर अंग ह विध्न॑ ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्‌ विज्ञेश विज्नचयखण्डननामधघेय श्रीशंकरात्मन सुराधिपवन्द्यपाद । दुगमिहाब्रतफलारिबलमडलात्मन्‌ विज्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्‌ ॥। सत्पदारागमणिवर्णशरीरकान्ति: श्रीसिद्धिबुद्धिपरिचर्चितकुडूमश्री: । दक्षस्तने वलयितातिमनोज्ञशुण्डो विज्ने ममापहर सिंद्धिविनायक त्वम्‌ ॥ पाशाडुशाब्जपरशूंश्र॑ दधच्चतुर्भिदोर्भिश्र॒ शोणकुसुमस्त्रगुमाज्जात: । सिन्दूरशोभितललाटविधुप्रकाशो विज्नें ममापहर सिंद्धिविनायक त्वम्‌ ॥। कार्येषु विज्नचयभीतविरस्विमुख्ये: सम्पूजित: सुरवरैरपि मोदकारी: । सर्वेषु च प्रथममेव सुरेषु पूज्यो विज्ने ममापहर सिंद्धिविनायक त्वम्‌ ॥। शीघ्राजनस्खलनतुड्धरवो ध्वकण्ठ स्थूलेन्दुरुद्रगणहासितदेवसद्भ: । शूर्पश्नुतिश्व पृथुवर्तुलतुज्ञतुन्दो विज्नें ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्‌ ॥ यज्ञोपबीतपदलम्मितनागराजो मासादिपुण्यददूशीकृतऋध्षराज: । भक्ताभयप्रद्‌ दयालय विज्नराज विज्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्‌॥। सद्रलसारततिराजितसत्किरीट: . कौसुम्भचारुवसनद्वय . ऊर्जितश्री: । . सर्वत्र मड््लकरस्मरणप्रतापों विज्नें ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्‌ ॥। देवान्तकाद्यसुरभीतसुरार्तिहरता ... विज्ञानबोधनवरेण... तमोझपहर्ता । आनन्दितन्रिभुवनेश कुमारबन्धो विज्न॑ं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम्‌ ॥ (सुद्गलपुराण) हे विश्नेश ! हे सिद्धिविनायक ! आपका नाम विज्न-समूहका खण्डन करेवाला है । आप भगवान्‌ शंकरके सुपुत्र हैं । देवराज इन्द्र आपके चरणॉंकी वन्दना करते हैं । आप श्रीपार्वतीजीके महान्‌ ब्रतके उत्तम फल एवं निखिल मज्ञलरूप हैं। आप मेंरे विज्नका निवारण करें । सिद्धिविनायक ! आपके श्रीविग्रहकी कान्ति उत्तम पद्यरागमणिके समान अरुण वर्णकी है। श्रीसिद्धि और बुद्धि देवियोने अनुलेपन करके आपके श्रीअड्ोंमें कुड्टमकी शोभाका विस्तार किया है । आपके दाहिने स्तनपर वलयाकार मुड़ा हुआ शुण्ड-दण्ड अत्यन्त मनोहर जान पड़ता है । आप मेरे वि्न हर लीजिये । सिद्धिविनायक ! आप अपने चार 'हाथोंमें क्रमश पाश, अड्डुश, कमल और परशु धारण करते हैं, लाल फूलॉकी मालासे अलंकृत हैं और उमाके अद्गसे उत्पन्न हुए हैं तथा आपके सिन्‍्दूरशोभित ललाटमें चन्द्रमाका प्रकाश फैल रहा है, आप मेरे विज्लॉका अपहरण कीजिये । सभी कार्योंमें विज्न- आ पड़नेकी आशड्जासे भयभीत हुए ब्रह्मा आदि श्रेष्ठ देवताओस्‍ने भी आपकी मोदक आदि मिछ्टान्नोंस भलीभाँति पूजा की है। आप समस्त देवताओंमें सबसे पहले ही पूजनीय हैं । आप मेरे विज्न-समूहका निवारण कीजिये। सिद्धिविनायक ! आप -' जल्दी-जल्दी . चलने, लड़खड़ाने, उच्चस्वरसे शब्द करने, ऊर्ध्वकण्ठ, स्थूल शरीर होनेसे चन्द्र, रुद्रगण आदि समस्त देवसमुदायको हैँसाते रहते हैं । आपके कान सूपके समान जान पड़ते हैं, आप मोटा गोलाकार और ऊँचा तुन्द (तोंद) धारण करते हैं । आप मेरे विध्नोंका अपहरण ज्रीजिये । आपने नागराजको यज्ञोपवीतका स्थान दे रखा है, -आप बालचन्द्रको मस्तकपर धारणकर दर्शनार्थियोंको पुण्य प्रदान करते हैं । भक्तोंको अभय देनेवाले दयाधाम विज्नराज ! सिद्धिविनायक ! आप मेरे विज्लॉको हर लीजिये । आपका सुन्दर किरीट उत्तम रलोंके सार भागोंकी श्रेणियोंसे उद्दीप्त होता है । आप कुसुम्भी रंगके दो मनोहर वस्त्र धारण करते हैं, आपकी शोभा--कान्ति बहुत बढ़ी-चढ़ी है और सर्वत्र आपके स्मरणका प्रताप सबका मज़्ल करनेवाला है। सिद्धिविनायक ! आप मेरे विज्न हर लें । सिद्धिविनायक ! आप देवान्तक आदि असुरोंसे डरे हुए देवताऑओकी पीडा दूर करनेवाले तथा विज्ञाननोधके वरदानसे सबके अज्ञानान्धकारको हर लेनेवाले हैं । त्रिुवनपति इन्द्रको आनन्दित करनेवाले कुमारबन्धो ! आप मेरे विज्लोंका निवारण कीजिये । गे स्तिनिककनबसाएर




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