बापू मैंने क्या देखा,क्या समझा ? | Bapu Mene Kya Dekha Kya Samjha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामनारायण चौधरी - Ramanarayan Chaudhari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पढ़ते ही मेरे दिलको बसा धक्का पहुचा कि जितना जिस अबसर पर मैं रोया मुतना
अपने महान भुपकारक पिताजी और परम स्नेहमयी माताके मरने पर भी नहीं रोया।
अतमें मुझे जिस वातसे आश्वासन मिला कि देशको ग्राधीजीके रूपमें तिलकका योग्य
अुत्तराधिकारी प्राप्त हो गया है। कुछ घुघली-सी स्मृति है कि लोकमान्यने भी मृत्यूते
पहले यह कहा था कि राष्ट्रके हित गाधीजीके हाथोमें सुरक्षित है और बापुजीके भी
बुद्गार थे कि लोकमान्यका काम जारी रहेगा। मेरे कमरेमें जुन्हीका चित्र था। मैंने
विस्तर पर बैठकर मुन्हे प्रणाम किया और गुनकी साक्षीमें गाघीजीकों श्रद्धापुर्वक
भारतका और अपना राष्ट्रीय नेता स्वीकार किया और सारा समय और शक्ति
लगाकर आजन्म देशसेवा करनेका ब्रत छे छिया। यह मुख्यत मावना-प्रचात निश्चय
था, जिस पर सितम्बर १९२० में लाला लाजपतरायकी अध्यक्षतामें हुआ करूकततेकी
विशेष काग्रेसने वापूके असहमोग कार्यकमकों पूरी तरह स्वीकार करके वुद्धिकी मुहर
लगा दी। परतु यह परिवतल जिसे मुन दिनो देशी राज्योके कार्यकर्ता ब्रिटिश
भारतीय राजनीति कहते थे भुसीसे सबध रखता था। समूचे भारतके बारेमें मेरे
विचारोमें यह सशोधन नागपुर काप्रेसके समय हुआ।
१५
मेरा तीसरी वार ब्रापूसे मिलनेका अवसर दिसम्बर १९२० में आया । नागपुरमे
« काग्रेसका साधारण अधिवेशन था। मेवाडमें बिजौलिया जागीरके किसान-सत्याग्रहके
नेता श्री विजयर्सिहजी पथिक वापूसे मिलने भुतके कंम्पमे गये। मैं भी साथ था।
मुझे अपने पिताजीसे प्राप्त वडोका अदव और सकोच सदा रहा है। निसलिमे मैं पथिक-
जीकी आढमें बैठा। बापूजीकी तेज नजरने देख छिया और पूछा, 'ये कौन है? '
“हमारी सस्था राजस्थान-सेवासघके मन्नी और मेरे प्रमुख साथी है।' जव मैने मुद्द
सामने किया तो तुरत वोले, ' आप चिंचवडमे मिछे तो थे? ' जितनी प्रवल थी भुनकी
स्मरण-शव्ति और लोक-सम्रहकी वृत्ति कि मित्तनी कार्यव्पस्तता और हजारोके परिचयमे
सी झेक अदेना कार्यकर्ता --या सावी कार्यकर्ता --को वे ने भूले !
७
श्द
पथिकजीनें पूछा, ” महात्माजी, हम लोग विजौलियकि अपने छोटेसे काममें लगे
रहें या मापके जिस महान यज्में हाथ वठाये * ” “नही, आपको स्वघर्म पालन करना
चाहिये। वह भी तो मेरा ही काम है और निस यज्ञकी ही अंक आहृति हैं। झाप
अुसीमें लगे रहिये। हा, असहयोग कार्यक्रमके जो अग देशों राज्यमें लागू किये जा
सकते हो भुस्टें जरूर अपने क्षेत्रमें लागू कर लीजिये! मगर मैं तो नुख्टे लापने ओेक
बात पूछना चाहता हु। मैने विजौलिया सत्याग्रहमें मदद देनेका वचन आपको पहटे
दिया था। यह वडी जिम्मेदारी मुन् पर वादमें आनी है। हिसावते मुझे पहले दिया
User Reviews
No Reviews | Add Yours...