इन्सान के खराडहर | Insaan Ke Kharadhar

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Insaan Ke Kharadhar by मोहन राकेश - Mohan Rakesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इस्सान के खर्डदर “कौन-सी पारो चाकी घोती ?' गोस्वामी ने फीकी दोती हुई उम्रता गाय पूछा । शाखी की नाभि के पास से सुस्वराइट उठी लिससे उसकी छाती णल गई, पर उसका गला इतना स़ुश्क हो रद था कि सुस्कराइट होठों तब नहीं शा सकी । ् पत्ता नहीं, उस दिन पारो कदती थी. ' चह्द बोला । क्या कदती थी नुम से पारी ?' शाख्ी को गोस्वामी का फीकापन देखकर फिर सज़ा 'घाया । पर मन का स्वाद उसके होठों पर नहीं फैला, उसकी धॉँखों में ढ़ गया । 'फदती थी चंद मेरे लिये एक बोती लाई थी, पर श्ापने चद्द पाले दरव ली, इसलिये प्तो चद्द रॉढ तेरे साथ भी. । श्रौर यद्द भी” कद्कर गोस्वामी ने घ्रनुभव किया हि उसने लीद कर दी है । बिना वात दढ़ाये उसने एव की धघोती शाखी को दे दी श्र कहा, तुझे घोती चाहिये, सो ले हो । पारो ठरानी की चातों का तू विश्वाप्त मत किया कर ।' घोनी लेकर शाखी के सन सें इतना धानन्दू उसडा कि विभोर ऐवर फार टुए स्वर से गाने लगा-'प्रथ्ु जी मोरे भ्वगुन चित्त न चरों। नीषे मंदिर की दददलीज़ के पास भक्तों की भीड काफ़ी वढी दो गई थी । यटुत-मे धोनी वर्ते श्रोर पगढी चाले सज्जन ये, कुछ 'घोती योर दापट्ट बाली देवियाँ, दो-एक तिकजे किनारे की साढ़ी वाली न प्यादनाए, दो-एक गुल पायजासे धर चकान्नी गोन्ष टोपी वाले नोंजवान एव रली शिया दाला घह्मचारी, एक सोने के बटनों वाला पहलवान चार ाद-दस-- भगवान के घपन हो रूप -नन्द्व-नन्द बच्चे । धार सदक पर धयवार वेचने दाले चिल्ला रहे थे--मिलाप मटाप, ड्िप्यून 'घग्द यार, श्वजीत पटिये, चीरभारत--तासी ता ख़बरें । हि दल




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