अमेरिकी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास | Ameriki Sahitya Ka Sankshipt Itihas

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Ameriki  Sahitya Ka Sankshipt Itihas by Dr. Sushil Kumar - डॉ. सुशील कुमार

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५१ रीका कुछ ऐसी चीज है जिसकी व्याख्या करनी होती है, न केवल श्रनजान युरोपीय लोगो के लिए, वत्कि श्रन्य भ्रमरीकियो के लिए श्रीर स्वय श्रपने लिए थी । एक ऐसे समाज के रूप मे, जिसके श्राधार मे कुछ श्रादर्शपूर्ण लक्ष्य है, अमरीकी समाज श्रपने ययार्थ को कभी-कभी आ्ादर्शों का खडन करते पाता है, आर यह भी कि श्रादर्श श्रीर यवाथें को एक दूसरे के सन्दर्भ मे देखना जरूरी है। साहित्य के सन्दर्भ मे यह श्रमरीकी उपदेशात्मकता 'होना चाहिए' श्रौर 'है' का एक श्रसन्तोपजनक मिश्रण रही है । फलस्वरूप लेखक के वहुधा एकाकी दिखाई देने पर भी, श्रमरीकी साहित्य मे ऐसा वहुत्त कम है जिसे “रहस्यवादी' कहा जा सके (यद्यपि श्राव्यास्मिकता कौ कमी नही है, भ्रमरीकी पुराकथा के साथ-साथ, धर्म का प्रभाव वहुत ही महत्वपूर्ण रहा है) । व्यावहारिक श्रौर पाथिव श्रादशवादी श्रौर अपाधिव पर हावी हो जाते है । श्रमरीकी राष्ट्रपति की भाँति भावी अमरीकी रहस्यवादी को श्रपना अध्ययन कक्ष छोड कर किसी प्रतिनिधि मडल से हाथ मिलाने जाना पडता है, श्रौर टेलीफोन की घटी हमेशा वजती ही रहती है । बहुघा यह्‌ मिश्रण एसे मसखरेपन के साथ व्यक्त होता है जिसके पीछे वडी गम्भीरता छिपी रहती है । एसा हमे एमिली डिकिन्सन या योरो मे मिल सकता है-- हे ईश्वर, भ इससे छोटा वर तु कसे नही मागता कि मैं अपने श्रापको निराश नकं श्रौर उसके बाद सबसे मूल्यवान यह है, जो तेरी कृपा प्रदान करती है, किम श्रपने मित्रो को बहुत भ्रधिक निराश करूं 1 यह सामान्य प्रथो मे हास्य की कविता नही है--इसका शीर्षक है, प्रार्थना भर थोरो जो कुछ कहते है, ईमानदारी से कहते हैं । लेकिन श्रपने सारे रूप मे अमरीकी हास्य ्राशिक रूप मे श्रमरीकौ उपदेशात्मकता कौ प्रतिक्रिया है-- जो कुछ है, ओर जसा उसे माना जाता है, उसके अन्तर का श्राभास । हर गम्भीर सरकारी श्रमरीकी वक्तव्य के समक्ष एसे किसी वक्तव्य को प्रस्तुत किया जा सकता है जो मजाक उडाता है । अ्रगर शब्दाडम्बर से मरा हुआ काग्रेशनल रेकाड' (ब्रमरीकी ससदीय कार्यवाही) है तो काग्रेस (भ्रमरीकी ससद) के सदस्यो शओ्रौर अन्य प्रवक्ताश्रो का मजाक उडाने वाले मिस्टर इूली श्रौर विल




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