भास्कर-वाणी | Bhaskar Vani

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Bhaskar Vani by Dr. Sushil Kumar - डॉ. सुशील कुमार

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-+ वाणी :- भार्यो भौर वहनं ! मन के वाद्‌ हैं चाणी । मन जो कुछ सोचता है, समफता है और देखती है उसे घाणी के माध्यम द्वारा प्रकट करता है। याणी मन फे द्वारा संचालित होती है । अतएवच मन शासक रै चाणी शासित है । मन राजा है और वाणी उसकी प्रजा है । यदि मापने मन, काया और घाणी को सम्माल लिया तो आपका सच संभल गया आीर इनमें से एक भी विखरा कि खव तमाशा चिलर गय । इनमें मी घौणीं महत्वपूणं है । मचुप्य जो कु सुनता है. उस पर चिचार करता रै । घाणी जो सुनी थ्तौर चोली जाती है, पक यन्त्र मात्र है। मस्तिप्क खुनी हुई वात पर विश्लेषण करता दै, जव उसका पिष्टेपण स्पष्ट हो जांतां है, तो मन उसे स्वीकार फर छता है। उसमें प्रेरणा उत्पन्न होती है। उत्तर में यद घांणी को मौन रहने को सकेत करता है, भधवा कुछ कहने को प्रेरित करता है । सुना हुआ शब्द मनुष्य सीखता है भर मारंभ में, चैसाो ही थोलता है। शिशु को जैसे सम्पकं में आप रखेंगे घह चैसा ही बनेगा । चसे ही चोलेगा गौर वेसे ही टेक अपनायेगा। यटि बच्चे को गदन चन में छोड दूं तो चद्द न चोटना सीखेगा, न घिचार करना सीखेंगा । भधिक से अधिक तो पशु की चोली




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