शासन मुक्त समाज की और | Shasan Mukt Samaj Ki Aur

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Shasan Mukt Samaj Ki Aur by धीरेन्द्र मजूमदार - Dhirendra Majumdar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~ १६ - विय परिखेद टूना शरौर सारी इनिया मं वह फैल ग्या) दुनिकासे साजेतत्र प्त्मदो प्या! रस क्रति कौ चेश म मनुष्य ने एक मदान्‌ भूल की 1 उसने गजाद्नो को सल क्रिपा, हेपिन वे जिस द शनिः फे मालिङ़ ये, उसकी श्रावश्यकता पते सत्मनदीभ्ि। सिफ़ंराजा ॐ हाथ से उसे छीनकर पार्तिमामट के नाम से जनता के प्रतिनिधियो की सस्या वनादर उसके हाथ में सौंप दिया श्रौर सौचा य हमरे श्रपने थाठमी के हाय में टेंड दे, इसलिण फं सतय नदी । देदात में एक कद्यायत्त है, “संवों मये कोनगल शान डर कादे वा 1? श्रथात्‌ श्र चैन से सोया जा सकता है । जनता मी प्रतिनिधियों को चुनस्र चैन से मो गयी} स्न्वि धवा पाव कादिमदर नाहों' इस तत्व को बद मूल गयी । निश्चित जनता की सुम्ययरथा श्रौर संचालन के द्रद्मने ये नये दड धारी झ्पनीं फशाल शक्ति वो लेकर जन-नीयन के श्रथिक-में-ग्रथिक दिरमे पर बच्चा करने लगें । नतीजा यह दग्रा कि यजतते के समय मे लोकत म जनता प्र द षा दल वदता गया यानी उमरी श्रायादरी वरती गर्व । श्रर्यात्‌ उसकी श्रामा श्रधिक कुत श्रीर निर्देलिन दाने क्ली ॥ चारिक पति




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