मृगनयनी में कला और कृतित्व | Mriganayani Men Kala Aur Krititattv
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
94
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १३
सकना अथवा दर में समझ पान! यह भी गुण यहाँ पृष्ण मात्रा में
।वद्ममान हूं 1
उधर सोनपाल हे पर वे कोई विशेप व्यक्तित्व नहीं रखते । ्रपने मत्री
धीर प्रधान के स्म उनका ग्रौर मत्री पुत्र दिवाकर कं सामने सहेजेन्द्र का व्यवित्तत्व
गौण पड जतां 1 नागदेव श्रव्य एक पूर्ण व्यवितत्वशाली युवक दै, सरीर राज-
कीयप फित में होने से उस वर्ग के गुण रहते हए भी वह उस वर्ग के ग्नन्य पात्र-व्यवितियो
की श्रपेक्षा अधिक तेजमय दीखता है ।
एवः रामदयाल हं जो चरि मे णेवमपीयर के इग्रागो (1820) से
दाद करता हं जिसमे दूमरो के लिये मको वास्तविक ग्रथ देने का ग्रद्धूत कोश
हैं, जिसमे दूसरों की महानता से झ्नात कित रहने का स्वभाव हैं पर जिसमें स्वामि-
भक्ति का गुण इन सव दोपो के लिये ढांल चना हुश्रा हैं श्रौर इसे इमागो से एकदम
अलग कर देता ह । रामदयाल मे श्रजुन कुम्हार की स्वामिभवित श्रायी है, श्रपने
सयं छल-वल लेकर । यो फा जा सक्ता ह कि रामदयान भ्रजुन और भूजवल
से मिलकर वना ह ।
प्रन्तिदत्न पाड भी नागदेव की भाति ग्रकेतं है, वह् प्रेम के ग्रभियापकी
भत्ति भरपनी मातुभूमि को पददलित कराने के सावका हं । इसको भाव के समक
'प्रेम को भेट' की उजियारी ही पहुंचती है,जो प्रेम से ग्रभिश्चप्त होकर, जिसके हायौ
विफलता पायी हैं उसें नाट कर देने के लिये प्रस्तुत हो जाती है ।
इस प्रकार पाय कम होते हुए भी प्रभावशाली हे, उनकी सहायता मे
उपन्यासों में रोचक सुगठन और घनिप्ठता श्रागयी है, पया-वस्तु मे विग्खलता
शरीर (0४१60 नदौ आ पाया । श्न पात्र के श्रव्ययन से य् भौ प्रतीत
होने लगता हैं कि चुन्दावनलान वर्माजी से निकट-पुर्व के उपन्यासकारों के पाव-
चरितों के कुछ झ्वयष उनमें भी मिल हो जाते हूं । रसिक, विलास-विभोर पाथो
का जो रूप योस्वामीजी ने खड़ा किया है वह वर्माजी के श्राभिजात्यवर्ग मे.खफ्रीजी
के भूननाय का दर्वन स्प रामदयाल मे हलका-हलफा सलक जाता ह -नित्नदेह्
दनमे यहुत पटिमार्जन ह्राद । इनमे वर्मा जी नें दुमरेहौ कामनिएै
“पर् निक्ट-पर्व क वान का श्रदयेप नमे छखयय ॐ १
User Reviews
No Reviews | Add Yours...