राधाकृष्णा - ग्रन्थावली खंड 1 | Radha Krishna Granthawali Khand 1
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
60.49 MB
कुल पष्ठ :
826
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कविता निज नेैननि लखि निज रैयत दुख दया हृदय उपजावति । दारिद फलइ अविद्या दुख को भारत बसा भगवावति ॥। भला सेाऊ नद्दि सद्दी रदति जीवित जापे मद्दरानी । तऊ उतह् सों बैठि दृरति दुख बरसि सुधा सम बानी ॥। सेऊ सद्दी गई नह ठुमसा विनको हूँ दरि लीना | भ्रहहह | देव निर्देय तुम अतिसय महा कष्ट यह दीनेा ।। तिरसठ बरस जासु छाया सुख कीना भारतबासी | ताकों अझनायास हुरि लीनी सब कछू आसा नासी || रे बीसवी सदी तेरो पैरो कैसे जग आये । या बसुधा को अमल चंद्र हरि चहूँ दिखि तम पैलाया ॥। जाको प्रताप छाया दिगत | जाके प्रताप बसुघा क्पत ॥। जा अबला-कुल मे जनम लीन | ध्रतिसय सबलन को जेर कीन ॥। जाके प्रताप दिनकर डरात । दिन रहत सदा नह्टि होत रात ॥। जाको मुख ताकत श्रति ससक । महिपाल जगत के मनहूँ रक ॥ जाको प्रताप सागर तरग । ले करत जगत मैं नाच रग ॥ फहरात विजय ध्वज अति उतग । लखि लखि सब झरि हिय रहत दग ॥। सह सकत न जासु प्रताप दाप । जिसि हरि पद अरयो न जगत नाप ॥। रॉ
User Reviews
No Reviews | Add Yours...