राधाकृष्णा - ग्रन्थावली खंड 1 | Radha Krishna Granthawali Khand 1

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Radha Krishna Granthawali Khand 1  by श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कविता निज नेैननि लखि निज रैयत दुख दया हृदय उपजावति । दारिद फलइ अविद्या दुख को भारत बसा भगवावति ॥। भला सेाऊ नद्दि सद्दी रदति जीवित जापे मद्दरानी । तऊ उतह् सों बैठि दृरति दुख बरसि सुधा सम बानी ॥। सेऊ सद्दी गई नह ठुमसा विनको हूँ दरि लीना | भ्रहहह | देव निर्देय तुम अतिसय महा कष्ट यह दीनेा ।। तिरसठ बरस जासु छाया सुख कीना भारतबासी | ताकों अझनायास हुरि लीनी सब कछू आसा नासी || रे बीसवी सदी तेरो पैरो कैसे जग आये । या बसुधा को अमल चंद्र हरि चहूँ दिखि तम पैलाया ॥। जाको प्रताप छाया दिगत | जाके प्रताप बसुघा क्पत ॥। जा अबला-कुल मे जनम लीन | ध्रतिसय सबलन को जेर कीन ॥। जाके प्रताप दिनकर डरात । दिन रहत सदा नह्टि होत रात ॥। जाको मुख ताकत श्रति ससक । महिपाल जगत के मनहूँ रक ॥ जाको प्रताप सागर तरग । ले करत जगत मैं नाच रग ॥ फहरात विजय ध्वज अति उतग । लखि लखि सब झरि हिय रहत दग ॥। सह सकत न जासु प्रताप दाप । जिसि हरि पद अरयो न जगत नाप ॥। रॉ




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