रघुवंश 2 | Raghuvansh 2

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Raghuvansh 2 by महावीर प्रसाद द्विवेदी - Mahavir Prasad Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कालिदास का खंमय। ् इंसवी सन्‌ के तीसरे शतक के पहले के नहीं । इसके साथ ही यह भी सूचित दावा है कि वे इंसवी सच के पाँचवें शतक के बाद के भी नहीँ क्योंकि साववे शतक के कवि बाशभड् नें दषचरित में कालिदास का नासेल्लेख किया है । दूसरे पुलकेशी की प्रशस्ति में रविकीर्तति ने भी _ मारवि के साथ कालिदास का नाम लिखा है । यह प्रशस्ति भी सातवें शतक की हैं। इस प्रशस्ति के समय भारवि को हुए कम से कम सौ वर्ष ज़रूर हो चुके हेंगगे । क्योंकि किसी प्रसिद्ध राजा की प्रशस्ति में उसी कवि का नाम लिखा जा सकता है जा स्वय भी खूब प्रसिद्ध हो । श्रौर, प्राचीन समय में किसी की कीत्ति के प्रसार में सा बर्ष से क्‍या कम लगते रहे होंगे । इधर बाण ने कालिदास का नासमार्लेख करने के सिवा सुबन्धु कौ वासवदत्ता , का भी उल्लेख किया है । झ्रतएव सुबन्धु भी बाण के कोई सा वर्ष पहले हुए होंगे । इस हिसाब से भारवि श्रार सुबन्धु का समय इंसवीं सच के छठे शतक के पूर्वाद्ध में सिद्ध दाता है । भारवि श्रौर सुबन्धु की रचना... में भजर्लेष झादि के कारण क्लिप्ता आ गई है । पर यह देष कालिदास की कविता में नहीं. हैं । अवएव वे भारवि झ्रौर सुबन्धु के कोई सो बष' ज़रूर पहले के हैं । अतएव वे गुप्त-नरेश द्वितीय चन्द्रगुप्त, उपनाम विक्रमा- दिय, ्नार तत्परवर्ती कुमारगुप्त के समय के जान पढ़ते हैं। अर्थात्‌ बे, अनुमान से, ३७४ से ४५० इंसवी के बीच में विद्यमान थे । यह पाण्डेयजी की कट्पना-कोटियां का सारांश है। इसके बाद... ”. ण्डेयजी ने और भी अनेक युक्तियों से अपने मत की पुष्टि की है। _इन्दुमती के स्वयम्वर का उल्लेख कर के आप ने लिखा है कि कालिदास ने जि एक _ सब से पहले इन्दुमती को मगध-नरेश के ही पास खड़ा किया है, अवन्ती *...... के झघीश्वर के पास नहीं । यदि वे झवन्ती (उज्जेन) के राजा के आश्रित होते ता वे इन्दुमती को पहले अपने श्रात्रयदाता के सामने ले जाते। ....... है .... पाण्डेयजी की राय में मगघ-नरेश ही उस समय अवन्ती का भी स्वामी था। _. अवएव श्रवन्तिनाथ का जा वर्शन इन्दुमती के हे :...... मगंघेश्वर दी का बोाध होता है । दोनों का खामी एकद्दी था शार वह जी ही. ....... द्वितीय चन्द्रगुप्त के सिवा और कोई नहीं हो संकंता । न के खयंवर में हैं उससे... है.




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