लोहिया के विचार | Lohiya Ke Vichar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Lohiya Ke Vichar by ओंकार शरद - Omkar Sharad

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about ओंकार शरद - Omkar Sharad

Add Infomation AboutOmkar Sharad

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
की न न ४ सम - उसका सम समिगा सन नल अर सुख पा हि री कं पवन ं की सन है शाप “अासुख द् श्र रत लाने, प्रपमार जब उनका डट कर विरोध किया जायेगा । श्रौर जब वे ऐसी लडाईइयाँ शुरू डी र के हिए भरपरी करते थे तब उसका व्यापक महत्व न समभझ्त कर सत्ताधारी श्रौर निहित दर मे भगीकार स्वार्थवाले उन्हे पागल कहने की स्थिति तक बौखला [उठते थे । भारत की रब होता है कि सत्ताधारी शक्तियों का सदा ही यह प्रयत्न रहा है कि लोहिया के विचारों व दिस लगातार सिद्धान्तो को जनता तक न पहुँचने दिया जाय, इसीलिए उपेक्षा, श्रपमान, ताकत महीं मिध्या प्रचार श्रौर बदनामी के नुकीले भ्ररत्र-शस्त्रो द्वारा उनके मानस-शरीर उमके बिलुत को सदा ही छलनी करने की सतत श्रमानवीय कोशिश की गई हे। पादों के छिंलाफ वि पाहैकि मुभे लोहिया श्रपने-श्राप मे स्वयं एक इतिहास थे । व का लोहिया की प्रतिभा, श्रोजपूर्ण॑ विचारों श्रौर कमं-सामर्थ्य से सामान्य स्त्री-पुरुषो की प्रतिभा व कमें का सु्त साम््य श्रब जागृत हो उठा है । इसका प्राशिक रूप में अब प्रत्यक्ष भी सिलने लग गया है । जलन-क्रास्ति की य ही वें चिनगारियाँ छिंटकने लगी है श्रौर प्रतिक्रातिकारिता, स्थितिप्रियता श्र के प्रयोग में दकियादूसी शक्तियों के श्रत होने का काल प्रारंभ हो गया है । सहयोग कभी 06 रा लोहिया मे प्रस्तुत ग्र थ लोहिया के कुछ सिद्धान्त-भूत विचारों का न्रमबद्ध व विषय- गधा कि री घार सकलन है। कृतियों को सम्पूर्ण श्राज्ञादी श्रौर समाजवादी विचारों के प्रति श्रास्था रखने वाले काशर्न मिलती श्रौर लोहिया-फिजा से परिचित पाठक तथा लोहिंया की चमकीली प्रतिमा से [ को चकाचौध उनके श्रालोचक भी इस ग्र थ में ऐसा सब कुछ पावेगे कि लोहिया को तथा सर्फाई उनके विचारों के माध्यम से पूरी तरह जाना जा सके । के विरुद दो इन विचारों की पक्तियो के बीच लोहिया की एक श्रावाज सतत सुनाई प्ण व सर्वर देगी, जो कभी टरटती नहीं श्रौर विश्व के दिगदिगन्त में गूंजती हुई नभमडल' हा । को भी का गूंज से भर रही है । बंपोकि, का गा लोहिया स्वय एक ऐसी तडप है; जो हर विद्रोही हृदय को भऋरककोर कर की श्रागे बढने को उसकाती रहती है, एक ऐसी सचाई है; जो जीवन को कभी पलायन नही सिखाती । श्रूविर्व्ण कक की वे शमी लोहिया के विचार' पाठकों के सामने प्रस्तुत कर के मैं न केवल लोहिया- तभी मै पर ला पा न _ ब- नर “पचास पा पिन




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now