प्रारम्भिक हिंदी कोश | 1774 Praarambhik Hindi Kosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गत अंश से उसका कोई सम्बस्थ नहीं है । इसी प्रकार थदि 'छुयता' झ० के आगे दे० ग्यूना' लिखा है, दो “चूना का वही अंश देखना चाहिए, जिसके आगे *झ०' लिखा है, उसके पुं० या संज्ञाबाले अर्थ से उसका कोई सम्बन्ध नदी है । 9. हिन्दी से जो गन अशुद्ध रूप थथवा अगुद्ध अर्थ से पढ़े हैं, उनकी अशुद्धंदा का निर्देश उचके आगे कोष्टक सें कर दिया गया ड्ै। ब' और 'व' के घम्तर का विशेष रूप से ध्यान रखा गया है । संस्कृत के जो शब्द वर सें न सिलें, उन्हें 'व' में और जो 'व' में न सिलें, उन्हें सें हूँ ढसा चादिए । ६. प्राचीन कबियों ने 'ख-व', 'शप्स”, शर्त, “य-ज' आदि में विशेष अन्तरें नहीं सानय है । बहुंत-से कवि “खारा' को “चारा”, क्षिन्न' को 'छेत्न', “गत्तत्र” को पमपत' 'शिव' को 'सिव' और 'यदु को 'जदु” लिख गये हे । ऐसे अपअष्ट रूपों सें से को बहुत झधिक अचक्तित हैं, वे तो इस कोश में दे दिये गये है, पर कर्म श्रचक्षित रूप छोड़ दिये गये हैं। शब्द हूँदले समय इस तचव का सी ध्यान रखना प्वाहिए 1 ७ इस कोश में शब्दों का कम तो उन्हीं खिद्धान्तों के अनुसार रखा गया है, जो शब्दु-लागर की रचना के समय स्थिर हुए थे । पर शब्द-सागर सें कहीं कहीं इशष्टि-दोष से उन सिद्धान्तों का अतिक्रमण सी हुआ है । इस अकार की भूलें जो जहीं मेरे ध्यान में छाई हैं, वहाँ चीँ वे ठीक कर दी गई हैं। इस कोश में इस क्षेत्र सें दूसरे कोशों से जो अन्तर दिखाई दे, उसके कारण पाठकों को झम नहीं डोना चादिए । (८३ चँं गरेजी दिन्दी-शब्दावली में चंगरेजी शर्व्दों के आगे जो हिन्दी पर्याय दिये गये हैं, उनसें से बदुठेरे बाद सें मिले या ध्यान में झाये हैं ; श्रौर फल्तः ये परिशिष्ट में दिये गये हैं । ऐसे अधिकतर शब्दों के परिशिष्ट का संकेत कर दिया गया है । अतः ऐसे शब्द सूख शब्द-रोश सें नहीं, चदिक परिशिष्ट सें देखने चादिएँ । छापे की भें सुके इस बात का बहुत खेद है कि इस कोश में छापे की कुछ पसी सददी झूलों हो गई है जो कद्दी जा सकती है । जैसे-( क ) झनजुपश्थित ( विशेषया ) भूख से “अजुपस्थिति' छुप गया है? 'एक-निष्' का दो गया है। “अपघि' की जगह 'शचावधि' छुप गया है। 'झनुलीवी” अपने डीक स्थान पर दो है ही, पर चह्द 'घमुकंपा' और 'अझनकरय' के जीच में सी छा गया है । सूल शब्दों के रूप खम्बन्थी नियसों के अनुसार 'झमतिवंघ' और 'शमुलंव' होना चाहिए । पर इनके स्थान पर सूल से “झम्नतिवन्घ' घर 'अझनुलस्व' रूप छप गये हैं । 'दाखन' के आगे सो दे० 'डासन' है, पर “डासन' अपने स्थान पर नहीं है, शत. घद परिशिष्ट में “दिया गया है । 'अपसत' सें ही “झपसरक' के दो अर्थ गये हैं, और “झपसरक' ्रपने स्थान पर शाया ही नहीं; अत बह भी परिशिष्ट से दे दिया गया है | “दुशमज्षव' का दूसरा झ वास्तव सें 'दाशसिक अयाली' में जाना चाहिए या,




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