सीधी चढ़ान भाग - २ | Sidhi Chadhan Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
296
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२० सीधी चढ़ान
सुबह श्राठ बजे से लेकर राव तक पुरुप लोग काम पर जपे श्रौर चलि
के हमारी श्र के हिस्से पर मारवाड़िने राज्य करती थी । इस से शाग को
यार बजे तक हम लोगो को कमरे में ही वेठे रहना पड़ता था । इस प्रकार
हमारी स्थिति बड़ी दयनीय हो गईं ।
हमारा कमरा नल-पाखाने के सामने था । सुवे से नल पर
स्त्रियां नहाना शुरू करतीं श्रौर नहाते समय दो स्त्रियां उनकी 'चीकी -
दारी करती, इससे हमे तो कमरे म दही घुसे रहना पड़ता था । दोपहर
मे बे सव चाल मे परऽ कर बाल संवारतीं । उस समय भी हमै दरवाक्ते बन्द
ही रखने पढ़ते थे | वे श्रापस में लड़ती-भिड़तीं, बेहद शोर मम्वा्ती; पर
द्रवाजा खोल कर हम ज्रिया-राज्य का तूफान देखने का श्रानन्द भी नहीं
ले सकते थे |
दस भीड़-माड, इस दुर्गन्ध, इस दुखी श्रौर शरस्य जीवन से मुभं
में विष्वि्-सा असंतोष श्नौर रोप उन्न हृश्रा । मुझे लगातार ऐसा भास होता
रहा मानो बम्बई' रासुसों का स्थान है श्रौर मैं यह विचार करने लगा कि
इन्हे किस प्रकार वश मैं किया जाय | ही
हम तीन मित्र साथ रहने को तैयार हुए; थे, पर पहले दिन से दी हममें
श्मापस मैं मेल न हो सका | हम घर का सामान जुन लगे । चौकी-येलना,
पत्तल-दीने, दातून श्रीर शाक खरीदने पर हम तीनों में इस विषय में विवाद
छिड़ गया कि कौन श्रच्छी-से-श्रच्छी वस्तु उठा कर घर हो चलेगा । मेरा मन
खट्टा हो गया श्रौर मैं इन मित्रों के साथ श्रज्ञ सिंकोड़े हुए; कछुए; की तरह
रहने लगा ।
हम सवेरे उठ कर थोड़ा पढ़ते श्रौर दस बजे खा-पी कर सो जाते । दो
बजे मैं कांदावाड़ी से निकलता । फणुसवाड़ी मैं 'दीडकी वी सिंगल” (एक
पैसे की प्वाय ) आर 'दीडकी प्वी लीमजी” ( एक पेंसे की लीमजी ) सा कर
पैदल चलतें हुए पेरिट लायत्रेरी मैं पहुंचता था । वहां दो-तीन सण्टे पढ़
कर पौने छः बजे तक रलो कालेज में दाजिरी देता श्रीर सात बजे पैदल ही
घर वापिस दाता था |
हम तीनों सहपाठियों का साथ-साथ खाने का कोई नियम महदीं था ।
बड़ी कठिनाई से मिला हुमा रसोइये का लड़का, इंयादातर खुर खाकर जो कुछ
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