सीधी चढ़ान भाग - २ | Sidhi Chadhan Bhag - 2

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Sidhi Chadhan Bhag - 2  by कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी - Kanaiyalal Maneklal Munshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२० सीधी चढ़ान सुबह श्राठ बजे से लेकर राव तक पुरुप लोग काम पर जपे श्रौर चलि के हमारी श्र के हिस्से पर मारवाड़िने राज्य करती थी । इस से शाग को यार बजे तक हम लोगो को कमरे में ही वेठे रहना पड़ता था । इस प्रकार हमारी स्थिति बड़ी दयनीय हो गईं । हमारा कमरा नल-पाखाने के सामने था । सुवे से नल पर स्त्रियां नहाना शुरू करतीं श्रौर नहाते समय दो स्त्रियां उनकी 'चीकी - दारी करती, इससे हमे तो कमरे म दही घुसे रहना पड़ता था । दोपहर मे बे सव चाल मे परऽ कर बाल संवारतीं । उस समय भी हमै दरवाक्ते बन्द ही रखने पढ़ते थे | वे श्रापस में लड़ती-भिड़तीं, बेहद शोर मम्वा्ती; पर द्रवाजा खोल कर हम ज्रिया-राज्य का तूफान देखने का श्रानन्द भी नहीं ले सकते थे | दस भीड़-माड, इस दुर्गन्ध, इस दुखी श्रौर शरस्य जीवन से मुभं में विष्वि्-सा असंतोष श्नौर रोप उन्न हृश्रा । मुझे लगातार ऐसा भास होता रहा मानो बम्बई' रासुसों का स्थान है श्रौर मैं यह विचार करने लगा कि इन्हे किस प्रकार वश मैं किया जाय | ही हम तीन मित्र साथ रहने को तैयार हुए; थे, पर पहले दिन से दी हममें श्मापस मैं मेल न हो सका | हम घर का सामान जुन लगे । चौकी-येलना, पत्तल-दीने, दातून श्रीर शाक खरीदने पर हम तीनों में इस विषय में विवाद छिड़ गया कि कौन श्रच्छी-से-श्रच्छी वस्तु उठा कर घर हो चलेगा । मेरा मन खट्टा हो गया श्रौर मैं इन मित्रों के साथ श्रज्ञ सिंकोड़े हुए; कछुए; की तरह रहने लगा । हम सवेरे उठ कर थोड़ा पढ़ते श्रौर दस बजे खा-पी कर सो जाते । दो बजे मैं कांदावाड़ी से निकलता । फणुसवाड़ी मैं 'दीडकी वी सिंगल” (एक पैसे की प्वाय ) आर 'दीडकी प्वी लीमजी” ( एक पेंसे की लीमजी ) सा कर पैदल चलतें हुए पेरिट लायत्रेरी मैं पहुंचता था । वहां दो-तीन सण्टे पढ़ कर पौने छः बजे तक रलो कालेज में दाजिरी देता श्रीर सात बजे पैदल ही घर वापिस दाता था | हम तीनों सहपाठियों का साथ-साथ खाने का कोई नियम महदीं था । बड़ी कठिनाई से मिला हुमा रसोइये का लड़का, इंयादातर खुर खाकर जो कुछ




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