जिंदगी के बदलते रूप | Zindagi Ke Badlte Rup

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Zindagi Ke Badlte Rup by मुनि ज्ञान - Muni Gyan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मुनि ज्ञान - Muni Gyan

Add Infomation AboutMuni Gyan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जिन्दगी के बदलते रुप मेरीन ड्राइव से दौडती हुई मारुती कार थाना की ओर जा रही थी । कार तीत्र वेग से चली जा रही थी। परन्तु चेम्बूर के चौराहे पर लाल बत्ती जल जाने से तेजी से ब्रेक मारकर रोकते हुए किशोर ने सध्या से कहा- आज की सध्या तो थाना के तालाब मे डूबते सूरज के रमणीय रूप को देखते हुए नाव खेते-खेते बितानी है। सध्या का वह सुनहरा टाईम बडी ही सुखद अनुभूति कराने वाला होता है। हा-हा शादी से पहले एक बार मैं भाई महेश के साथ गई थी और उस तालाब मे नाव चलाई थी | लेकिन उस समय का आनन्द और था, और इस समय का मजा कुछ और ही आयेगा। सध्या की बात सुनकर किशोर ने कहा, “लेकिन ऐसा क्यो ? उस समय भी तो तालाब वही था, जो इस समय है। सध्या भी वही थी जो आज होगी। सब कुछ तो वही रहेगा। फिर आज का विशेष आनन्द कैसा ? जरा सकुूचाते हुए सध्या ने कहा-थोडा आप समझने की कोशिश करिये। मैं नहीं समझती कि आप मेरा ईशारा नहीं समझते, फिर भी जान-बूझकर मेरे से सब कुछ स्पष्ट कराना चाहते हँ तो सुनिये उस समय मेरे साथ भाई था- तब भ्रात-स्नेह प्राप्त था, पर आज मेरे साथ मेरे प्राणनाथ है, जीवन खवैया है, अत आज का आनन्द तो विचित्र प्रकार का होगा ही।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now