जीवन - पथ | Jeewan Path
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२५ उपन्यास
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का जबाव दिया,न उनकी ओर आँख उठाकर देखा। तब
परिडतजी गजकर बोले--“उतरेगा कि नहीं, बोल ! नहीं तो बेर की
यह काँटेदार लकड़ी तेरी पीठ पर तोड़ेँ गां !”
-जाने कौन किससे कहता है ! बिनू दादा जैसे पैर लटकाकर
बैठे हुए थे, वैसे ही चुपचाप बैठे रहे । एक बात न बोले, न हिले,
स किसी ओर उल्लटकर देखा। ।
तब परिडतजी ने पुकारकर कहा-“हाबू, चढ़ तो रे, पेद पर ।*
' 'परिडतजी का हुक्म पाते ही हाबू उफ़ हाबुलचन्द्र धोती समेट-
“कश पेड़ पर चढ़ गये। पेड़ की जिस ऊँची डाल पर सेरे बिनू दादा
बैठे हुए थे, हाबू जब उसके पास पहुँचा तो एकाएक पेड़ पर जैसे
अलय का तूफ़ान आ-गिरा। सारा पेड़ भयानक रूप से हिलने-डुलने
ओर भकभोर खाने क्गा। ऊपर की ओर आँख उठाकर देखा
तो बिनू दादा जी-छोड़कर पेड़. को हिला হই हैं--घाः, कैसा
अयानक फकमोर था ! एकाएक प्-मापाक्ग करे पेड़ पर से
कोई भारी चीज पानी में जा-गिरी । देखा तो हाबू सर्दार पानी में
गिरकर डुबकियाँ लगा रहे है । तब परिडतजी खुद ही कपड़े समेट-
कर उसे बचाने के लिए कूद पड़े । उस समय लड़कों का জু
खूब शोर-गुल मचाने लगा । इसी बीच में ोक्रा पाकर चिन् दादा
दयुमन्तर हो गये ।
আজজএতের এল এও दद्षावण दक्ष क्रफ सता तर दादा ग ्क्षकातद्र्षाए प्रक्षादर:
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