जुगत प्रकाश राधास्वामी | Jugat Prakash Radhaswami

Jugat Prakash Radhaswami by राधास्वामी ट्रस्ट - Radhaswami Trust

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जुगत प्रकाश राधास्वामी श्पू २०-ऐसी हालत बगैर मन और सुरत के सिमटाव के या श्राडा बहुत ऊपर की तरफ चढने आर शब्द यथा स्वरूप से मिलने के नहीं हा सक्ती है फिर जिस किसी की ऐसो हालत रोजमरं: था कभो २ होती है ते! समभ्हना चाहिये कि उसके राधास्वासो दृघाल जेसा २ उसकी चाल के मुवाफ़िक मुनासिघ समभकते हूं तग्क्ठो देते जाते हैं यानी सिमटाव और चढ़ाइ उसके मन और सुरत की करते जाते हू और उसका ना भी उसके अपनी दया से थोड़ा बहुत हजम कराते जाते हू नहीं ता इस कदर रस पाकर चहतेरे अभ्यासी सस्त हाकर घरबार और काराबार छेाड़ने का तैयार हे! जावे ॥ र८-जा किसी का अपने अभ्यास के समय ऊपर की लिखी हुडे हालत की पहचान कम होती हैं ते सच उसका यह है कि उस अभ्यासी के। गनावन यानी खयालात अक्सर भजन और ध्यान स॑ सताते और घविघन इालते रहते ह इस वास्ते उसके चाहिये कि वह भपनी एक या दा बरस गजरो हट पहले की हालत तबीअत के साथ अपनी हाल की हालत के मुकाबला करे तो जा वह सच्चा सतसंगो जीर सच्चा अभ्यासी है तो उसके और उसके घर वालाँ का इस क्र जरूर माल र पड़ेगा कि पहले की निस्त्रत उसको तथ्ी अत्त ससारी लागों के सग में ओर ससारो व्यीौहार और कारोबार गेरजरूरो जोर गंरमामूलो में कम लगतो है और दुनियत्रो




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