तुलसी - दर्शन | Tulsi Darshan

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Tulsi Darshan by बलदेवप्रसाद मिश्र - Baladevprasad Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गोस्वामी जी और मानस ६ जी का जीवनचरित्र लिखा ® ¡ माउज्न, रन्न সহি विदेशी विद्वान ने तथा अनेकानेक देशो विद्वानों ने उन्हों के लेखों को आधार माना है । कहना न होगा कि इनका भी आधार किवदन्तियों और गोस्वामी जी के ग्रन्थों के साथ ही साथ वही प्रियादास जी की टीका थी | भ्रभी हाल में तुलसीचरित तथा मूलगोसाइचरित नामक दो ग्रन्थ उपलब्ध हुए हैं जो गोस्वामी जी के समकालीन उनके दो शिष्यों के-- रघुबरदास तथा बेणीमाघवदास के--रचे हुए कहे जाते हैं। बाबा रघुबरदासकृत कहे जाने वाले तुलसीचरित की प्रामाणिकता एकदम सदिग्ध है जैसा कि लाला शिवनन्दनसद्दाय के लेख से विदित हता है।। बाबा वेणीमाधवदास रचित मूलगोसाइचरित बहुमत से प्रामा- णिक माना जा रहा है। यद्यपि १० रामनरेश जी त्रिपादी ने उसकी प्रामाणिकता के खण्डन मे अपनी भूमिका के कई पृष्ठ वचं कर दिये । परन्तु उनके तक एकदम अकार्य नही है| इस सम्बन्ध मे हमने श्राचायं १० रामचन्द्र जी शुक्त से तथा बावरू रामदास गौड़ से बातचीत कीथी | त्रिपाटी जी के तर्का के सम्बन्ध मे उनकी भी यदी सम्मति है। बाबू रामदास जी गौड़ तो निश्वयपूवक मूल गोस्वामी चरि को प्रामा- शिक मानते हैं क्‍योंकि उन्होंने उसको एक बहुत प्राचीन प्रति स्वतः देखी है ¢ । बाबू माताप्रसाद गुप्त ने तुलसीसन्दर्भ में “मूलगोस्वामी- चरित की ऐतिहासिकता पर कुछु विचार” प्रकट किये हैं जिनके आधार श = শত क পপ 1 9 | এপ | লাগি 4#हंडियन पंटिक्वेरीज़ञ १८४३, | † गोस्वामी सुलसीदास ( बाब श्मासुन्दरदास और मदाशय बढ़- ध्वाक्ते छेत ) पृष्ट १९। উকি গু ९६ से ६९ । 9 खेद है कि इस समय इस संसार में न तो बाबू रामदास गौद रहे भौर न पं० रासचस्त शुक्र ही ।




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