अमर आलोक | Amar Aalok
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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अमर मुनि - Amar Muni
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सतीश कुमार - Satish Kumar
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सर्वोदिय छी व्यापक भावना ६
का भाव एक तरफ, फिर भी दोनो की कोई तुलना नहीं हो
सकती । वह सारा वैभव नगण्य है, उस इन्सानियत के सामने।
सम्राट श्रेणिक विचार कर रहे है कि नरक का वन्वन किमी भी
तरह छूट जाए। इसके लिए वे चाहे जितना मूल्य दे सकते है ।
भगवान महावीर से उन्होने पूछा कि भगवन् ! मेरी नरक गति
किसी भी कीमत पर टल जाए, ऐसा उपाय बताइए। मैं स्वस्व
देकर भी नरक की गति टालना चाहता हँ । तव भगवान् ने कहा
किं श्रेणिक 1 एक साधक दो घडी के लिए प्राणि मात्र के साथ
झ्रपनी सहानुभूति श्र करुणा का भाव जोड कर बैठ जाता
है, समभाव मे लीन हो जाता है। उसकी उस दो घडी की
सामायिक भावना के सामने सारे ससार का ऐश्वयं फीका है। दो
घडी की वह साधना तो खरीदी जा ही नही सकती | किन्तु उसकी
दलाली भी प्राप्त नही की जा सकती | कितनी बडी बात कही
भगवान महावीर ने । हृदयस्थ करुणा और प्रेम के विचार को
कितना महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है ।
राजा का हृदय बदला
एक राजा नास्तिक था। उसका यह विचार था कि सारे
समार का एष्वयं मेरे ही लिए है1 मेरे सुखोपभोग मे कोई दखल
नहीं दे सकता । उसकी यह भावना छूव के रोग की तरह सारे
राज्य मे व्याप्त हो जाती है। उसके राज्य मे श्रन्याय-श्रत्याचार
को बढावा मिल जाता है। उसे बड़े-बड़े ज्ञानी मिले, उन्होने
उपदेश सुनाए। किन्तु ज्यो-ज्यो उसने उपदेश सुने, त्यो-त्यो अहकार
भी वढता गया । उसने अपने दरवार में से बडे-बडे विद्वानों
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