सत्यामृत (मानव-धर्मं-शास्त्र ) (दृष्टि -काण्ड) | Satymrit (Manav Dharm Shastra) (dristi Kand)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
220
श्रेणी :
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No Information available about दरबारीलाल सत्यभक्त - Darbarilal Satyabhakt
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सत्य
[७
वह यह सिद्ध कने की कोशिश करता है कि
यह सब हमोर धर की चोरी है । अपुक देशके
.मैज्ञानिक छोक जो आतिष्कार करते है वह सत्र
हमर र मे श्ल दै उदे एकर उन टोगो ने
आविष्कार कर ढिये हैं. | वे यह नहीं सोचते
कि'अताब्दियो से जिन ग्रथों को तुम पढ़ रहे हो
उने तुम्हे आज तक बिन आविष्कार की गप
तकन बे दूसरे को वहा कह से मिछ गये !
ऐसे छोगो को अगर यह मानना पड़े कि नहीं
यह सवर तष्टो परो मे नही दै तो बे उ सव
को मानना अछीक्ार कर देंगे इस अकार यह
खत्न-मोह सत्य-दर्शन में काधक होजायगा |
कुछ জী কমা ल-मोह कुछ दूसरे तरह
के शब्दों से प्रग्ट हुआ करता है | वे कह। करते
हैं-.' विज्ञान की सब खोजे हमारी मा्यताओं का
समन करती है| यह ख्वामात्रिक है कि विशेष
अधिष्कार सामान्य मान्यता का समर्थन को पर
वह सैकशे भ्रमो का उच्छेदन भी करता है |«
सल्न-मोही उच्छेदन की बात पर तो ध्यान नहीं
ठता और एकाव सामान्य वात को पक कर
वह अपने गीत गनि रता है | उसे सल से
प्रेम या मक्ति तह हती কিন্তু অলী হন का
भेह होता है जोकि एक तरह से अहकार का
परिणाम कहा जा सकता है | वह सथकों सत्य
समझ कर नहीं मानता किन्तु अपना समर्थक
समझ कर मानता है | अगर अपना सर्म्क नहीं
है तो बह मानने को तैयार नहीं है | अपने प्रथ
` सगराय, मत आदि का गेह म खतो दै
जो कि स॒त्य-दरगन में बावक है | बहुत से पढिति
अर्थ पहिंले मान बैठते हैं फ़िर कोप और व्याकरण
का कचूमए कना वरना রম সঙ से इच्छित अध
खीचते रहते हैं | कोई मी वाक्य हे ने किसी ते
किसी तह से अपनी बात पिद्ध करना चाहते
हैं । इसाल्यि अवसर के बिना ही अल्कार, एकाक्षरी-
জী आदि का उपयोग करते हैं और सींवे
तया प्रक सगत अ को छोडकर कुटि अग
निकाल करते हैं| यह मतमोह भी নী है |
बहुत से लोग तो सिर्फ इसीलिये किसी साथ
को अपनोने क्षो तैयार नहीं होते कि वह हमे
नाम का नहीं है । सल्सम्रज के सिद्वान्तो को
जान कर बहुत लोगों ने उन्हें माना पर वे इसी-
हिये प्रगट में समर्थन न कर सके, न उसके
अचार मे सहायता कर सके कि वे सिद्धान्त उनके
सम्दाय के नाम पर न कहे गये थे । वे अपने
सम्प्रदाय के नाम पर कुछ देषो फो म सहने
को तैयार थे परु अगर उनके नाम की छाप
न हो ते वे परम सत्य से भी हणा या उपेक्षा
करने को तैयार ये | ऐसे छोग सत्य की खोज
नहीं कर सकते | सत्य के खोजी को खल मोह
जिसे नाममोह भी क्या जा सकता हैसे दूर
रहना चाहिये । इस प्रकार दोनो प्रकार के गेह
का त्याग करने में मुष्य में निषक्षता पैदा होती
है। भगवान सत्य के दर्शन के छिंये निःपश्षता
एक आवृक्षक गुण है।
२ प्रीक्षकता
भगवान सत्य के दर्शन की योग्यता के लिये
दूसए आवश्यक गुण प्रीक्षकता है। जो आदमी
पधक नही है बह सख वे दर्शन नहीं कर
सकता ! वह किसी वात को माने या ने माने
उसके मत का कु मूल्य नही है | तुम यह क्यो
मानते हो ? क्योकि हमोरे वार मातुते थे इस
उत्तर में कोर जान नहीं है | बाप कौ मृत्य
से ही किसी बात को मानने मे मनुष्य होने का
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