घुमक्कड़ - शास्त्र | Ghumakkar - Shastra
श्रेणी : कहानियाँ / Stories, निबंध / Essay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.44 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ते ्रथातों ७ के कि पक से पकज बनकर श्रादिकाल से चले थ्राते महान घुमवकढ़ धर्म की फिर से प्रतिष्ठापना की जिसके फलस्वरूप प्रथम श्रेणी के तो नहीं किंतु द्वितीय श्रेणी के बहुत-से उनमें भी पैदा हुए । ये बेचारे बाकू की बढी ज्वालामाई तक केसे जाते उनके लिए तो मानसरोवर तक पहुँचना भी मुश्किल था । झपने हाथ से खाना बनाना मांस थ्रडे से छू जाने पर भी धर्म का चला जाना दाढइ-तोढ सर्दी के कारण हर लघुशंका के बाद चर्फीले पानी से हाथ धघोना श्र हर महाशका के बाद स्नान करना तो यमराज को निमन्त्रण देना होता इसीलिए बेचारे फूक फू ककर ही घुमक्कढी कर सकते थे । इसमें किसे उद्ध हो सकता है कि शेव हो या केप्याव वेदान्ती हो या सदान्ती सभी को झागी बढ़ाया केवल घुमक्कद-धघम्म ने । महान घुमक्कढ-घर्म बौद्ध धर्म का भारत से लुप्त होना क्या था तब से कूप-मंडकता का हमारे देश मे बोलबाला हो गया । सात शताढ्दियाँ बीत गई और इन सातों शताठ्दियों में दासता श्र परतन्त्रता हमारे देश में पैर तोदकर बेठ गई यह कोई आकस्मिक बात नहीं थी । सेकिन समाज के श्रयुश्नो ने चाहे कितना दी कूप-मंडूक बनाना पादा लेकिन इस देश में माई-के-लाल जब-तब पेदा होते रहे जिन्होंने कर्म- पथ की शोर संकेत किया । हमारे इतिहास में गुरु नानक का समय दूर का नहीं है लेकिन ्पने समय के वद्द सददान् घुमक्कद़ थे । उन्होंने भारत- भ्रमण को दी पर्याप्त नहीं समसा घर ईरान श्र घ्रव तक का धघावा मारा । घुमक्कडी किसी चढे योग से कम सिद्धिदायिनी नहीं है श्र निर्भीक तो वह एक नस्वर का बना देती है । घुमसक्कढ़ नानक मकके में जाके काबा की शोर पैर फेलाफर सो गए सुदकों में इतनी सदिष्युता होती तो श्राइमी होते । उन्होंने एवराज किया और पैर पकद़के दूसरी शोर करना चाहा। उनको यह देखकर बढा अ्रचरज हुआ कि जिस तरफ घुमक्कड नानक का पेर घूम रहा है कावा भी उसी श्रोर चला जा रहा है । यह है चमत्कार थ्राज के सर्वशक्तिमान कोठरी
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