पाश्चात्य शिक्षा का संक्षिप्त इतिहास | Pashchaty Shiksha Ka Sankshipt Itihas

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Pashchaty Shiksha Ka Sankshipt Itihas by डॉ. सरयू प्रसाद चौबे - Dr. Saryu Prasad Choubey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ग ) - परिवत्तन किए हैं । ऊपर तो केवल उसके एक अति महत्वपूर्ण अंग की ओर संकेत किया गया ह यहाँ हमारी बौद्धिक संस्कृति के विकास के एक दूसरे पहलू की.चर्चा कर देना आवश्यक अतीत होता हैं। मानव-समाज के-लिए किसी-भी प्रकार के ज्ञान की गरिम्रा- इसी में दै कि. इसके आलोक का जितना- अधिक प्रसार सम्भव हो किया जाय । ज्ञान के असार की विधि-अबवा 'शिक्षण-कला' का बहुत ही बड़ा महत्व है। ओर यह बहुत स्वाभमविक है कि हमारे झान-के ऋान्ति-सूलक विकास के साथ हमारों झ्िक्षण-विधि ; में भी उचित परिवत्तन हों ।इस -दिशा में हमारे -विज्ञान- ने-हमें पुनः बहुत बड़ी गति दी है। अब हमें मनुष्य के मस्तिष्क की आधार-भूत - प्रदृत्तियों वं शक्तियों के परखने के साधन मिलते जा रहे हैं। आज के मनोविज्ञान ने मनुष्य के मस्तिष्क -के - निरत . कोने में पड़ी हुई अन्थियों -और शक्तिपूण प्रदृत्तियों-मेधा की काय-कम्रता,-क्रियास्ीलता आदि अनेक . अनस्‍्तत्वों के नापने और समझने की विधियों का वैज्ञानिक -अयोगों के आधार -पर आहइनचय- जनक विकास किया है। अब हम मस्तिष्क की प्रखरता, सममने की अ्क्ति, प्रतिमा की विश्वेषत आदि गुणों को मशित के अंकों में व्यक्त कर सकते हे । आधुनिक मनोविज्ञन' का बहुत ही मनोरंजक इतिहास है । यहाँ स्थानाभाव से में उसकी चर्चा नहीं करूमा। पर यह में अवश्य कहूँगा कि अंल्कोड बेने अभिति मनोवज्ञानिक ने मानव की मेधाश्नक्ति तवा उसकी .चितुबृत्तियों ओर मनोभावों को सूत्रों में बाँघने का जो साहसपूण प्रयत्न किया है यपि वह पण रूप-से सफल नहीं हुआ है, पर निश्चय ही उनके प्रयास ने प्रनोविज्ञान को एक बड़ी शक्ति दी है। स्पष्ट है किं इन साधनों के सहारे इम्परी शिक्षण विधि को क्रिवना बल मिलेगा । ` मानव-मस्तिष्क के इम অব্গক্হাল का हमारे समाज के सामूहिक विकास पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ रहा है। हम अवर समाज की मानसिक शक्तियों का केवल अपने अनुमान के सहारे नहीं वरन्‌ सीधे दंग और अधिक स्पष्ट रूप से समझने की क्षमता रखते हैं। इस प्रकार एक ओर सृष्टि के तथ्यों को जानने की हमारी छमता तथा दूसरी ओर उस इच. का-सम्राजिके स्तर्‌ घर प्रसार करने की हमारी योग्यता के-विकास ने हमें आज वाध्य कर दिया दैफकि हम मानव-समाज के गठन: और व्यवस्था में अवश्य सुधार तथा परिवत्तन करों ¦ जीवन-यापन का वह दंभ जिससे मनुष्य के सभी क्रियाकलाप अपने सम्मिलित अभाव द्वारा निरन्तर उसको 'परमसत्य? के ज्ञान की ओर प्रेरित करते रहें उसका 'जीवन-दरशानः कहा जायगा | प्रत्यैक युग में ऋषियों ओर मनीषियों ने कुछ झाइवत सिद्धान्त अब्िपादित करने का प्रयत्न किया है । इस यद्द कह आये हैं. कि विरव में अभी तक कोई देखी बस्तु नहीं--कोई ऐसा शान या जीवन की क्रिया नहीं जिसे चिरन्तन अथवा शश्वत कहा जाय; पर कुछ येसो कात अवइय हैं जो अपेक्षा कृत झास्वता की चोतक हैं। जो भी हो समय-समय पर दाझ्लनिकों और मियो ने कुछ सिद्धान्त अवरय बनाये जिनके श्रालीक. मे मानव को -संस्कृति-बारा ने अपनी गतिविधि ठीक: की और जिनसे मनुष्य जीवन को चिरकाल तक गति और प्रेरणा मिलती रहो है। पर यह बहुत स्वभाविक दे कि ज्यों-ज्यों विश्व में प्रकृति के आन्‍न्तरिक तथ्यों का हमारा छान बढ़ता गया त्यॉ-त्यों इमारे ये सिद्धान्त जो अपेज्ञाकृत अधिक अपूण ज्ञान के आधार पर कसाये गये थे कुछ बेकार और निबल से होते जायेंगे। अपने इन्हीं सिद्धान्तों के प्रकाश में हमें इनकी दुबलता का आभास मिलता जा रहा दें। इस सम्बन्ध में हम्नारा मणित-शाल एक अनुपम उदाइरण उपस्थित करता दै। इंगलेंण्ड के विश्वविश्रुत मणखितश् और वैद्ानिक आइज़क न्युटन के भुरुत्वाकषण के सिद्धान्त ने विज्ञान के विभिद्न-क्षेत्रों की बहुत सी समस्याओं का:इतना विश्वसनीय




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