साकेत के नवम सर्ग का काव्य - वैभव | Saket Ke Navam Sarg Ka Kavya Vaibhav
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.09 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थे
बच्चा जब इट वर छेता है तो कसी के बहुत मनाने पर भी दह्द कुछ
'खाता-पीता नहीं, याल-इठ तो प्रसिद्ध ही है । रंक को भी यदि राज्य
प्राप्त हो जाय तो डसे पट्रप स्यंजन अनायास उपलब्ध हो जाते हैं,
किन्तु भनभ्यास के कारण वह उन व्यंजनों से भी दूर दूर रहता है ।
इसी प्रसंग को लेकर उ.सिंछा भपनी सखी से कहती है कि तू क्षीर
क्यों छे जाई है ? भौर क्यों इस प्रकार इद कर रही दै ? मैं तो इसे
पीने से रही ? पर तू यह तो बता कि मुझे पिलाने का इठ क्यों कर
रही है ? कया तूने मुझे वोई सफल-हठी झिशछु समझ रखा है जो रक
डोकर भी राउयशाली हे !& उमिंछा के कदने का तात्पय यह दै कि
में जोक्षीर नहदीं पी रही हूँ, इसका कारण यह नहीं हैं कि मैंने रु
कर बच्चे की तरह दटठ ठान लिया हैं, न मेरे लिए यही कद्दा जा
सकता हैं. कि सुझ्ने कभी व्यजनों की कमी रही हो; मैं तो पट्रष
व्यजनों की गादी ही रही हूं किन्तु व रूँ कया, भाज प्रिय के वियोय में
मेरो भूख जाती रही, मेरीजि्मा का स्वाद जाता रहा ! तू मेरे सामने
व्यंजनों का थाऊ लाती हैं, किन्ठु एक कौर भी तो नहीं भाता---
झरी व्यर्थ है व्यंननों की बड़ाई ,
हटा थाल, दू क्यों इसे घाप लाइ !
वही पाक है; जो बिना भूख मावे ;
बता किन्ठ तू ही, उसे कोन खावे ?
बनाती रसो₹ सभीको खिलाती ,
इसी काम में श्रान में तृप्ति: पाती ।
रहा किन मेरे लिए एक रोना
खिल्ञार्ड किसे मैं श्रलोना-सलोना 2
# 'रंक मी राउयशाली” दठिशु के विद्वेष्ण रूप में प्रयुक्त हुआ दे ।
अगकिंचन जन भी भपने बच्चा के इठ वो कुछ दे-दिला कर मथवा
उनको बदला कर पूरा कर ते दें । इसलिए बच्चे रंक दोकर भी राज्यशाली
कहे जाते हैं ।'
नर
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