गद्य - गरिमा | Gadya Garima
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
50 MB
कुल पष्ठ :
228
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ताता. मकर लशा -০০শ ০৮ পা নিত এ
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प्रत्येक बार ভল্হীলি बीमार होने का बहाना किया । तच उनके पुत्र ने
उनको महाराजा के अप्रसन्न होने का डर दिखलाकर महतलों में जाने
का आग्रह क्रिया । इस्त पर उन्होने पदं के बाहर बेठकर महाराजा से.
बात करने में अपना अपमान होना प्रकट कर महाराजा के पास जाने
से सारू इन्कार किया | यह बात उप्त सेब॒क ने ज्यों-की-त्यों महाराजा
से कड सुनाई। इस पर महाराजा ने उक्ष सवक का फिर भेजकर
कविराजा के कहला भेज्ञा, कि यदि मेरी आँख की पीड़ा बढ़ जाय
तो कोई चिता नहीं, पर आपको बाहर बिठज्ञाकर बात नहीं करूँगा |
तब वह द्रबार में गए | गुण-ग्राइक महाराजा ने नेत्र की पीड़ा होने
पर भी कविराजा को अपन सम्मुख बुज्ञाकर बात-चीत की ।
महाराजा ने अपने राजकुमार छत्रलिंदह की शिक्षा का भार भी
कविराजा पर छोड़ा था; ऊ्रितु कविराज़ा ने कवर के लक्षण देखकर
जान लिया कि वह अबगुणों का भंडार है, उस पर शिक्षा का कुछ भी
प्रभाव नहीं पड़ेगा, इसलिये उन्होंने राजकुमार को शिक्षा देना छोड़
दिया। महाराजा भसानसिंद्द के जब ज्ञात हुआ कि केविराजा राजकुमार
के शिक्षा देने के लिये नहीं जाते, तब उन्होंने उनसे राजकुमार को न
पढ़ाने का कारण पूछा । कविराजा ने कहा--“यह कुपूत है, इसको
शिक्षा देकर में अपनी कीर्ति में बढ्ठा लगाना नहीं चाहता ।” आगे
जाकर उनका कथन अन्रशः टीक निकला, ओर महाराजा सानसिंह
को छुत्रतिह के कारण बड़ी-बड़ी आपत्तियाँ उठानी पड़ीं।
कविराज़ा की अद्भुत काइय-ऋला की प्रशंसा सुन मेवाड़ के महा-
राणा भीमसिंह ने, जो काव्य के ज्ञाता थे, उन्हें उदयपुर बुलाकर
विशेष रूप से उनका सम्मान करना चाहा, परंतु उन्होंने जोधपुर-नरेश
के अतिरिक्त अन्य जगह से दान न लेने की प्रतिज्ञा कर ली थी, इस- .
लिये महाराणा से प्रतिग्रह लेना अस्वीकार कर उसके लिये धन्यवाद-
पुव क्षमा-याचना की । द
महाराजा सानसिह के पूवं जोधपुर की गदी प९ उनके चचेरे भाई
भीससिंह थे। भीमसिंह ने गद्दी पर चैठते ही अपने कई माई-मतीजों
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