भावना और समीक्षा | Bhavana Aur Samiksha

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Bhavana Aur Samiksha by डॉ. ओमप्रकाश - Dr. Omprakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(১) प्रकृति कौ मदमादी यई चाल, देख ले जी भर प्रिय के संगे। डाक्ष दे गलबाँदी का जात, हृदय में भर ले प्रेम उम्ग। ভেনিনজছাক্কা হাম) “झस्तु, विकृत जीवन फो स्वश्य' पनाने का एकमान उपाय ফীন- सता, स्नेह या परेम दै, क्योकि धनिन्द का सोत मिश्वामा से णकार. माव स्थापित फरना दै, जो ज्ञान के द्वारा भी होता दै परम्तु हृदय च्के भोग से सहज ही सुलभ है 1 जच पभी असांद इस फोमलसारकी माँग फते दै वेव उनवी टैष्टि पहलें'नारी की ओर जाती दै । शक्ति के पिना शिव भी शव दै; तब नारी के भिना सामाजिक जीयन जिस प्रसार से फाम्य हो सकता दे । सध्यय्रुग में नोरी पुरुष शा बन्धन'थी क्योंकि पुरुष बायर था, श्रॉज सारी पुरुष की प्रेरणा हे?क्योंकि सुरुष में आयास्म- विश्वास फिए से जगरदां है। नारी की अधघुर प्रेरणा से ही पुरुत अपने सुप्ताश की प्राप्ति करके पूर्ण यन जांता है और उल्लसित होकर हम विश्वकीभंगलमूरत्ति के।प्रति कृतश्ञता के'शप्ने उद्गार प्रकट करता ~ तुमने रस दँस मुझे सिखाया, विश्व खेल है खेल चती । ुमते .मिंज्कर भुमे बताया, सबसे परते मेत्ष चतो॥॥ (दामायनी)




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