हेनसाँग की भारत यात्रा | Hensang Ki Bharat Yatra
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20.5 MB
कुल पष्ठ :
440
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
ठाकुर प्रसाद शर्मा - Thakur Prasad Sharma
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दर ह्लनसाँग की मारत यात्रा रद रनवास को भ्रष्ट किया । राजा इस बात को सुन कर बहुत क्रुद्ध हुआ और बड़ी निरदेयता के साथ अपने भाई को दंड देने पर उद्यत हो गया । उसके भाई ने निवेदन किया कि महाराज मैं दंड से भागूंगा नही परन्तु मेरी प्रार्यना है कि आाप सोने के डिब्बे को खोलें । राजा ने उसी समय सोने के डिब्बे को खोलकर देखा तो उसमे उस कटे हुए गुप्त भाग को पाया । राजा को बहुत आश्चर्य हुआ और उमने पूछा कि यह क्या वस्तु है ? भाई ने उत्तर दिया जिस समय महाराज ने यात्रा का विचार किया था और राज्य मेरे सूपुद हुआ था उसी समय सुभफको पापियों से भय हो गया था और इस कारया मैंने स्वयं अपने गुप्तभाग को काट डाला था । अब महाराज को मेरी टूरदर्शिता का पता लग गया इस कारा मेरी प्रार्थना है कि मैं निर्दोष है महाराज मेरे ऊपर छुपा करे । राजा पर इस बात का बडा प्रभाव पडा और उसने ई की बहुत प्रतिष्ठा करके यह आज्ञा दे दी कि तू महल के प्रत्येक स्थान पर बिना रोक-टोक मा जा सकता है । इसके बाद ऐसा हुआ कि एक दिन भाई विदेश को जा रहा था रास्ते मे उसने एक ग्वाले को देखा कि वह ४०० बैलो को बधिया नपु सक करने की तदवीर कर रहा है । इस बात को देखकर उसको अपनी दा का ध्यान हुआ भौर अपने कष्टो के अनुभव से उसको विदित हो गया कि कितना बडा कष्ट इन पशुओं को बधिया हो जाने से मिलेगा । उसके चित्त मे करुणा का ख्रोत उसड पडा । उसने मन मे सोचा कि क्या अपने पूर्वजन्म के पापों के कारण ही मैंने यह कष्ट पाया ? ऐसा विचार करके उसने द्रव्य और बहुमूल्य रत्न देकर उन बैलो को खरीदना चाहा । इस दया के कार्य का यह प्रभाव हुआ कि उसका वह कटा हुआ बज्ञ कुछ दिनो मे ज्यो का त्यो हो गया और इस कारण उसने रनवास का आना जाना बल्द कर दिया । राजा को उसके वहाँ आना जाना बन्द कर देने से बहुत आइचर्य हुआ और उसने उससे इसका कारण पुदा । तब आद्योपान्त सब कथा सुनकर अपने भाई को असाघारण व्यक्ति जानकर राजा ने उसकी प्रतिष्ठा और उसका नास अमर करने के लिए इस सघाराम को बनवाया । यही कारण है कि यह असाधारण सघाराम कहलाता है । कं इस देश को छोडकर सौर लगभग ६०० ली पश्चिम जाकर तथा एक छठे रे रेगिस्तान को पार करके हम पोहलुहकिया प्रदेश को पहुँचे । पोहलुहकिया वाजुका या अक्सू इन 1 प्राचीनकाल मे इसका नाम चेमेह अथवा किहमेह नमी था । जुलियन साहव का कौमे निश्चयरूप से किहमेह ही है। देखो प्राचीन काल में यहू अचसू राज्य का पूर्वी भाग था । पोहलुहकिया अथवा वालुका व॒ नामकरण का कारण तुक न चौथी का मे कमूसू के उत्तरी-पश्चिमी माग के अधिकारी थे कक ततमान काल में अक्सू नगर उद्यतरफन से पूर्व भर ६ सील और कुचा दशिण-पश्चिम १५६ मील है हम
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