लोक साहित्य की सांस्कृतिक परम्परा | Lok Sahity Ki Sanskratik Parampra

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Book Image : लोक साहित्य की सांस्कृतिक परम्परा  - Lok Sahity Ki Sanskratik Parampra

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डॉ. सत्येन्द्र - Dr. Satyendra

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मनोहर शर्मा - Manohar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका काल ही में प्रवाश्ति दक्षिग कोरिया वे छार डार्व टिविटों पर एश शोबग दा (1006) प्रवाशित भी मयी है । उगरा रार यह हैं पार सवरहांरा बुमझग पर्वेव यो तलहटी में रहा था। एफ হন ভব অত লতোহ। ঘঃ লঙ্গহী बाटने गया था, उसने प्रनायास ही एक रक्तस्तात मृग देशा जो प्ररेरी ते मयभीत होर रे भागा जा रहा था। सकडहारे ने उस पर दया बर उसे [টো শাহ उसाबी रहा वो | शृ ने इश उपत्रार था बदला बुदाने मे लिए सकटटारे वो बताया कि बुमगैग पर्वत में एक रारोवर है। वहाँ सवर्स जो पप्मगाएँ भाती हैं। उनसे से एक के वस्त्र रोफर तुम छिपा देगा উই प्रपनी परनी घना सेना ( पर स्मरण गहे, उसके অঙ্গ तय तक मत लौदाना जब तब तोन बच्चे म हो जाये । सकडहारे ते तदनुसार यस्य चुराकर एव भष्रारा को भ्पमी पत्नी सना तिया भौर भानम्दपूर्वव रहते लगा । उनके दो बच्चे हो गये | लवड॒हारा मृग वी बात भूत गया और एक दिति उरते उवे घुराये हुए बस्तर भी लोटा दिये। उन्हें पहन कर प्रप्सरा प्रपने दोनो पुथ्रों को लेकर उड़ गयी । पत्नी भौर पुत्रों कै वियोग में वह मरणामशन्न हो चला । वही मृग फिर उसके पास झाया | उसे सात्वना देते हुए उसने बताया कि सुम्र फिर उसी सरोवर पर जाप्रो । भ्रव प्रष्राए्‌ सरोवर पर नही प्राती | भव वे स्वर्ग से वाल्टियाँ डालकर उस सरोवर से पानी सीच लेठो हैं। तुम वहाँ जाकर एब़ वाह्टी में बेदकैर स्वर्ग में चले जाना । उसने ऐसा ही किया। रारोवर पर जाकर एक बाल्टी में बैठकर उपर चला गया भौर प्रपनी पली दया बच्चों से मिला 12 सिद्ध है कि दक्षिस कोरिया मे यह लोककथा शत्यत्त लोकप्रिय झौर लोइ-प्रतिप्टित है। तभी उसे चौथी कथा माला (720९ छल।६$) मे তান टिकटों पर छापा गया है। हिन्दी में बुठुबन वी सृगावती में स० १५६० वित्रमी से हमे यही बा मिलती है । इस कहाती में क्कडहारा नहीं एक राजुमार है। इसमे भप्सरा ही रवेय मृगी है। इस बा वा ही झाखार लेकर रा० १७२३ में 1. द ইজকুহিভ নীনজী আল হতিযা ৫০1 ১011,26 507৫2) ण्ण 27 1971 १, 59




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