श्रीमद्भगवद्गीता | Shrimad Bhagavad Gita

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दान ताप (| डे श्रीपरसात्मने नमः | _ श्रीमद्वगवद्रामानुजाचार्यकृत भाष्य और उसका दविन्दी-मापानुवाद प्रथम पदक पहला अध्याय कस्तुतामपवातो5एं बासनेयं नमामि तम्‌ ॥ जिनके चरण-कमठोंका चिन्तन करनेसे समस्त पार्पोका नाश हो जानेंके यारण मैं वासविक तत्वकों प्राप्त इुआ हूँ, उन श्रीयामुनाचार्को प्रणाम करता हूँ । हरि ऊँ श्रिय। पति। निखिठ- |. हरि: 5* जो पति हेयप्रत्यनीककस्यागिकतानः, स्वेतर- | सम्पूर्ण हेप गुणगणसि रहित, एकतान समसवस्तविरुपणानन्तज्ञाना- | ल्पाणमय एवं अपनेसे अतिरिक्त समर [ओऑसे . चिंठक्षण एकमात्र स्वामाविकानव- | कद ज्ञाननिन्द-खरूप हैं, जो खामाविक घिकातिशयश्ञानवदैशरयवीयंशक्ति- तक) असीम अतिंदाय ज्ञान, व, ऐश्वय, वीर्प, | रात और तेज प्रशति असंख्य कल्पाणमय | महान्‌ समुदद हैं; जिनका दिव्य श्रीकिमरद रवेच्ानुरूप सदा एकरस खिन्त्य दिव्य अद्भुत नित्य सिर्मछ स्यसौगन्ध्यसौन्दर्यसी- ] कप यान तर सौडुमार्य, ढावण्य और यौवन आदि स्वोचितविविधविचि- अनन्त गुर्थोदा मण्दार है; जो अपने




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