धरती माता | Dharti Mata

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Dharti Mata by ताराशंकर वंद्योपाध्याय - Tarashankar Vandhyopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धरती साता किशोर केसावियनका । उसके लम्बे केदा आग से तपी हवा के गर्भ भोंकों से झूल रहे हैं शत 89068 पर 068 &810प0. कि 1 शाप ये ? ० 6/ पिंक 959 इक #ाएत ५6 फाए०्91008 दिए 88 फ़ाछप अचानिक उसकी कत्पना में बाधा पड़ी । अरे वह क्या दो सियार एक सुकुमार बछड़े को पकड़े लिये जा रहे हैं । ना ये सियार-जंसे तो नहीं लगते । ये ता सियार से कहीं बड़े हैं । देखने में बहुत-कुछ सियार-जसे होते हुए भी सियार से इनमें फर्क है । सियार तो इस प्रकार पूँछ सीधी करके नहीं चलते । उनके चलने का ढंग भी तो ऐसा गुमानी नहीं होता । इनके चेहरे की बनावट थी तो सियार से नहीं मिठती वह जरा चौकसी दिखाते हुए शम्भू को पुकार उठा--दाम्भू रे राम्भू पुकारने के ढंग से शम्भू चौंक उठा बोला-- जी और पेड़ की कुछ ऊ चाई पर से ही धम्म से नीचे कूद आया । से इशारा करके दिवनाथ ने कहा--देखा १ राम्भू बोला--आह सालों ने काम तमाम कर दिया है बछड़ा मर गया है | शिवनाथ ने पूछा--ये सियार तो नहीं हैं भेड़िये हैं क्या रे ? -जी हाँ। बढ़े पाजी होते हैं ये । देखिये न यह लोहू गिरा है शिवनाथ ने धनुष सम्हालकर कहा--छगाऊँ एक तीर १ जाने दीजिये साठों को । पभी खदेड़ छे जायँगे और फाड़ खायँगे । ब्वाघ की जाति के हैं न




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