गौतमधर्मसूत्राणि | Gautama Dharma Sutrani
श्रेणी : धार्मिक / Religious, बौद्ध / Buddhism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23.54 MB
कुल पष्ठ :
360
श्रेणी :
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No Information available about डॉ. उमेशचन्द्र पाण्डेय - Dr. Umeshchandra Pandey
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न कद दाना करों अत हे दिला
पक
(११ )
विपरीत मनु ओर याज्ञवल्क्य जंसे को मानव से ऊपर देवी शक्ति से
संपन्न दर्शाया गया है ।
थे. घम्ंसूत्र प्रायः रद में हैं या कहीं-कहीं सिश्रित गद्य जौर पद्य में हैं, किन्तु
स्पतियाँ रलोकों में या पद्यबद्ध हैं ।
भाषा की दृष्टि से घर्मसूत्र के पहले के हैं और स्खतियों की. भाषा
अपेक्षाकृत जर्वाचीन है ।
६. विषयवस्तु के विन्यास की दृष्टि से भी उनमें भेद है। धम्मंसूत्रों में. चिषय
की क्रम यां. तारतम्य का अनुसरण नहीं करती, किन्तु स्टतियाँ अधिक
व्यवस्थित और सुगठित हैं, उनमें विषयवस्तु मुख्यतः तीन शीर्षकों में विभक्त है--
आचार, व्यवहार और प्रायश्चित्त ।..
७. बहुत बढ़ी संख्या में घर्मसूत्र अधिकतम स्पतियों से हैं। . .
गोतम घमंस्रत्
सभी घ्मंसूत्रों में गौतम धर्मसुत्र सबसे प्राचीन है। यह केवल गय में है तथा
इसमें शठछोक का कोई उद्धरण नहीं दिया गया है, जबकि दूसरे ध्मंसूत्रों में
श्लोक का उद्धरण आ जाता है । इसकी प्राचीनता के कई प्रमाण हैं
१. सर्वप्रथम इसका उल्छेख बौधायनधर्मसूत्र में कई जगह किया गया है । यहाँ
तक कि गौतमधमंसूत्र का उन्नीसवाँ अध्याय अर्प परिवर्तित रूप में बॉघायन-
घर्मसूत्र में मिर्ता है और इन दोनों में बहुत से सूत्र एक दूसरे से मिछते-
जुर्ते हैं । अनेक प्रमा्णों से यह बात सिद्ध है कि बौधायन ने ही गोतमघमसूत्र
से सामग्री ्रहण की है दर ७
२. इसी प्रकार वसिष्टधर्मसूत्र में भी गौतमधमंसूत्र से सामग्री ली गयी है।
इसमें दो स्थानों ४. ३४ एवं ४. ३६ में गौतमधमंसूत्र का उद्धरण है। इसके
अतिरिक्त गौतमधमंसूत्र का उन्नीसवां अध्याय चसि्टघमसूत्र में बाइसवें अध्याय.
के रूप में आता है । वसिष्टधर्मसूत्र में कई सूत्र ढीक गौतमधर्मसूत्र में आये हुए .
सूत्रों के समान हैं. जिनसे यह सिद्ध होता है कि गौतमधमंसूत्र व्सिघमंसूत्र से
पहले का है ।
३. मनुस्खति ३२. १६ में गोतम का उल्लेख किया गया है और उन्हें उतथ्य का
पुत्र बताया गया है ।
४. याज्ञवलक्यस्खति १. '५ में उन्हें धमंदाख्रकारों में गिनाया गया है
_ “'पराशरव्यासशंखलिखिता दु्नमोतमो'””
ल् अपराकं-ने भविष्यपुराण से यह. श्लोक उछत किंया दे डे
: “प्रतिषेघः सुरापाने मद्यस्य च 'नराधिप ।
श्विजोत्तमा नामेवोक्तः सततं:गी ॥””
और यह सुरापान के विषय में ठीक गौतस के सूत्र के अनुरूप हैं ।
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