सहेली के पत्र | Saheli Ke Patra

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Saheli Ke Patra by सैयद कासिम अली - Saiyad Kasim Ali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९ छन्दर मनुष्य अष्घुन्दर तथ असुन्दर सुन्दर दन जाते हैं। सोन्दयह्रीय अथवा झुन्दर बनना सुख्यकर हमारे स्वास्थ्य पर मिभर है। जो स्चस्थ हे. घही सुन्दर हे, जो अस्वस्थ है, वही असुन्दर। कितना ही सुन्दर मसुष्य क्यों न 1, यदि वह अस्वस्थ है तो उसका चेहरा पीला, कान्तिहीन ओर निस्‍्तेजञ हा जाता है, वह कुरूप एवं बेहंगा दिखाई पड़ने लगता है। अतः सुन्दरता को स्थिर रखने के लिए उत्तम स्वास्थ्य की चड़ी भारी खरावश्यकता है। स्वास्थ्य को उत्तम बनाने के बहुत से साधन है ¦ परन्तु यदि उनमें से दो हीं मुख्य बातों पर ध्यान दिया जाय तो हम अपने उद्देश में बहुत कुछ सफल हो सकते है। पहली वात है आहार-घिद्यार का नियमित झूप से पालन ओर दुसरी शरीर के रण- पुद्दों को खुदढ़ रखने के लिए किसी न किसी प्रकार का व्यायाम करना | ये दोनों स्वास्थ्यरूपी। गाड़ी के दो पहिये हैं, ज्ञित पर हमारा स्ोन्द्॒य, प्रतिष्टा, सुख और जीचन अवलम्बित रहता है । लियमित रूप में आहार न करने से सनन्‍्दारिन हो जाया करती है, जो कि नाना धकार के रोगों की जड़ है। गाजयक्ष्मा, संग्रहणो- चचासीर ओर হুক গালি भयंकर रोगों के अतिशिक्ल दाँतों के सयंकर रोग परायोरिया की भी यहा जड़ है।जब पेट में भोजन लड़त है तो ज़दरीली




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