नन्द दास | Nand Das

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उमाशंकर - Umashankar

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भवानी दत्त उप्रेती - Bhavani Datt Upreti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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15 पूर्ति का और পাদ किया है । 'सर्ते रामाविष्ट आलोचना का आधार पं०ठमाशंकर তল সী জা नन्‍्ददात है। इस उच्च में सात शोजकों के जलर्गत-- जोवनी + राना ७ सत्दवास का ता वै पुष्टता $ सिद्धान्त, नन्‍्ददास का पदावली साहिल्‍्य नल्ददास कौ मि फालो खद्‌ कना तथा पद्चिशिष्ट-- वल्तमाचार्य का ४द्ार्उंत दरेन परर पृष्टिमार्म पर्‌ লী তাত ইহ है । न शोणक कै अन्तर्गत ঈলল ল: पर्िचिया त्मक दुष्टिकौण को हा कालक मिलतो है और লল্তজাঘ के अध्ययन को उस पका শী আঁ डा पुण्य जो के जे ययव कै फालस्वण्य सामने आई, का তলা विकास दुष्ष्टिकांचर नहों हाँता । की गो प्रमृदयात् मोतत রানি सके! आधे! भेत ता খানা এই নাহ, कनी सतित सोनः नः भिव ३३ डाण० मटनार्‌ के इषटान्त करी प्रमुददाल समोतत प्रमुख आजलाचक हैं, जिम्हाँते उष्टङ़ाप परिकियः नामक ग्रन्थ तै अन्य अष्टङापो किया के साथ नच्ददाद् कै विधय पै मौ विचार प्रस्तुत किए हैं । मोतत जो ने জাল জান্তা আঁ তত आतौचनाः ्लोकनो श्रीद कान नाणक शोजीकों के अच्तवत कि को चयाँ को हैं ।* सूर- दास और गयसानन्वदास के पश्चातु अष्टड्ाप में नत्यदास का सर्ववैष्द कवि माला हे । पोतन बौ नन्ददास का तुलसीदास का माह मानने के पक्ष' यें # । उनके अनुसार हस सम्बन्ध में कौई आपत्ति नहों हाँनो चाहिए क्याँकि वाता में इस बात का' स्वष्ट कान है । मोतल जो के हस प्रयास ই লম্ধজাঘ विधयक स्वतंत्र अध्ययन को बावश्य- বলা को पूर्ति कै कठं विशेष योगदान वृ्ष्टिमित वो हवा । তাও शथामयुन्दएलाल दौतित क्वा ढा० सलैहलता त्री वास्तव जय चिः कदि साक सनेन सवरिमानिति सकोीनतिमः मयिः पत कि कः जिनोषि लोक पे जनि सोहन नि केना সাটাচ ওাী-ন্হাং রাযাও করারও আরাঙ্বার: ও মাদগানার় ननि ডা, জাতী, দার হা, ३४ अलॉचना त्मक ग्रन्थों के अन्सर्गत हा ५. ध्यामयुस्वाताल बोचित क्या डा+ प्नैखतता गोदा स्तव के कमश, कृष्णका ज्य में अ्परगीत द्‌ उसको परष्परा 1 कुज्ण-उस्तेशने-म-हैं.+ हन-परस्धर-में भार हिन्दी पै क्रवरनोत) कम्पाः कामक क




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