वसंत - मंजरी | Vasant Manjari

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Vasant Manjari by राजबहादुर सिंह - Rajbahadur Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भरषा भली भाँति समझ और बोल लेती हैं। सेनिन ने तुरन्त फ्रच भाषा में बोलना शुरू कर दिया। सेनिन का नाम सुनकर दोनों बहुत प्रसन्‍न हुई और उन्होंने कहा कि रूसी होकर भी उसका नाम इतना सरल और सहज उच्चारणीय है। उसका ईसाई नाम “मित्री' भी उन्होंने पसन्द किया। लड़की की माँ ने बतलाया कि अपनी युवास्था मे उसने 'मित्रियो' नाम का एक नाटक देखा था, पर “मित्री मित्रियो' से भी म्रच्छाहि) इस प्रकार संचिन लगभग घराटे भर उनसे बात करता रहा। माँ-बेटियों ने उसे अपने कुटुम्ब का भी सारा हाल कह सुनाया; पर विशेष बात लड़की की बुढ़िया माँ ने ही कीं । उसने सेनिन को बतलाया कि उसका नाम लियोनारा रोज़ेली है और पच्चीस वषं पहले उसके पति गिवनी बेतिस्ता रोजली ने फ्रेंकफ़ोर्ट में हलवाई की दकान खोली थी । बाद में उसका देहान्त हो गया । फिर उसने बतलाया कि उसका पति विसेन्जा (इटली) का निवासी था ग्रौर बड़ा क्रोधी श्रौर चिडचिडे मिजाज का आदमी था। इटली के प्रजातन्ते दल से उसका सम्बन्ध था! यह्‌ बातें रोजेली ने सोफे के पास रखी हुई अपने पति की प्रतिमा को दिखा दिखाकर कहीं । “यह भी निश्चित बात है कि मूतिकार भी प्रजातन्त्रवादी था,” रोजेली ने ठंडी साँस लेकर कहा। उस प्रतिमा में गिवनी बंतिस्ता का पूर्णो सादुश्य नहीं दीखता था, क्योंकि प्रतिमा के मुख मण्डल से कुछ ऐसा रूखापन और कटदुता टपकती थी कि देखने वाला उसे डाकू के ग्रतिरिकत और कछ नहीं कह सकता था । झपना परिचय देते हुए श्रीमती रोजेली ने ,इस प्रकार बतलाया--''भेरा पित-कल तो परमा कै प्राचीन नगर से, जहां कोरीज़ियो का बनाया हुश्रा प्रसिद्ध बुज है, सम्बन्ध रखता है; पर बहत दिनों से जमनी मेँ रहने के कारणा मै बित्कृल जमन बन गर्द हं इसके बाद उससे विषाद- युवत मु ह बनाकर सिर हिलाते हुए लड़के और लड़की की ओर इशारा करके कटा-- “गरब तो मरे पास बस यही सम्पत्ति---एमि- 2




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