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हिंदी लघु निबंध | Hindi Book | Hindi Laghu Nibandh - ePustakalay

हिंदी लघु निबंध | Hindi Laghu Nibandh

Book Image : हिंदी लघु निबंध  - Hindi Laghu Nibandh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परपिनिपफिफरकनडाफ 5 रूप से नहीं आ पाया है । कालिन्दीकूल परे शरत-चाँदनी का सजीव चित्रण मिलता है । कुँज वन का भी अच्छा वर्णन किया गया है । वियोग-पक्ष में सूर और नंददास के भ्रसरगीत काव्य-क्षेत्र में अपनी विशेषता रखते हैं । अष्टछाप के कवियों के अतिरिक्त कृष्ण-भक्ति-शाखा में अन्य कई उल्लेख- नीय कवि आते हैं जिनका उल्लेख करना यहाँ परमावश्यक है । हितहरिवंश गदाधघर भट्ट मी राबाई सुरदास मनमोहन श्री भट्ट व्यास जी रसखान इत्यादि का इनमें विशेष स्थान है । मीरा और रसखान की सरसता सुर के अतिरिक्त अन्य विषयों में नहीं पाई जाती । इस प्रकार क्ृष्ण-भक्ति-शाखा के कवियों ने अपनी अमुल्य रचनाओं द्वारा हिन्दी-साहित्य के भंडार को भरा है । हिन्दी में रोति-साहित्य धारा-6 हिन्दी-साहित्य के इतिहासज्ञों ने रीति-काल का प्रारम्भ सम्भवत्‌ 17०० से माना है । हिन्दी काव्य अब प्रौढ़ हो चुका था । मोहनलाल मिश्र ने स्पूंगार- सागर श्छंगार सम्बन्धी और करुणेश कवि ने कर्णाभरण और श्रुति-भुषण इत्यादि अलंकार सम्बन्धी ग्रन्थ लिखे । इस प्रकार रस-निरूपण होने पर केशव ने शास्त्र के सब अंगों का निरूपण शास्त्रीय पद्धति पर किया । परन्तु हिन्दी- साहित्य में केशव की कवि-प्रिया के पश्चात्‌ 5० वर्ष तक कोई अन्य ग्रन्थ नहीं लिखा गया और 50 वर्ष बाद भी जो रीति-ग्रन्थों की अविरल परम्परा चली वह केशव के आदर्शों से सर्वेथा भिन्न एक पृथक आदर्श को लेकर चली । केशव काव्य में अलंकारों का प्रधान स्थान मानने वाले चमत्कारवादी कवि थे । कार्व्याग-निरूपण में उन्होंने हिन्दी पाठकों के सम्मुख मम्मट और उद्भट के समय की धारा को रखा । उस समय रस रीति और अलंकार तीनों के ही लिए अलंकार शब्द का प्रयोग होता था । केशव की कवि-प्रिया में अलंकार का यही अर्थ मिलता है । केशव के 5० वर्ष पश्चात्‌ हिन्दी-साहित्य में जो परम्परा चली उसमें अलंकार्य का भेद परवर्त्ती आचार्यों के मतानुसार माना गया और केशव की अपनायी हुई धारा को वहीं पर छोड़ दिया गया । हिन्दी के अलंकार ग्रन्थ चन्द्रालोक और कुचलयानन्द के आधार पर लिखे गये और कुछ ग्रन्थों में काव्य-प्रकाश तथा साहित्य दर्पण का भी अलुकरण किया गया । इस प्रकार संस्कृत का संक्षिप्त उदाहरण हमें हिन्दी-साहित्य में मिलता है । हिन्दी-साहित्य में रीति-युग का प्रवर्तक हम इसलिए केशव को न मानकर चिन्तामणि त्रिपाठी की मानते हैं । इन्होंने काव्य के सभी अंगों का निरूपण अपने तीन प्रसिद्ध ग्रन्थ काव्य-विवेचन कवि-कुल कल्पतरु और काव्य-प्रकाश द्वारा किया । इन्होंने छन्द-शास्त्र पर भी एक पुस्तक लिखी है। चिन्तामणि




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